माता शीतला की विधि विधान से आराधना करने से न सिर्फ रोग दूर होते हैं, बल्कि भक्तों को निरोगी जीवन व स्वच्छता की प्रेरणा भी मिलती है
चैत्र मास की कृष्ण सप्तमी और श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तिथि को मनाई जाने वाली शीतला सप्तमी को शास्त्रों में शुभ व फलदाई माना गया है । इस पुण्यतिथि पर बच्चों में होने वाले चेचक व छोटी माता के प्रकोप से बचाने के लिए श्रद्धालु विधि-विधान के अनुसार पूजन करके उपवास रखकर प्रसन्न करने का यत्न करते हैं । मां शीतला देवी की असीम कृपा से कई व्याधियां शीघ्र दूर हो जाती हैं ।
शीतला देवी पार्वती और दुर्गा की अवतार मानी जाने वाली मां शीतला देवी को स्वयं ब्रह्मा ने उत्पन्न किया था । उनका स्वरूप कुरूप है । ये लाल वस्त्र धारण करती हैं और इनका वाहन गधा है । इनके एक हाथ में गंगा जल से भरा कलश है, तो दूसरे हाथ में झाड़ू । जो स्वच्छता का भी प्रतीक है । शास्त्रों के अनुसार शीतला माता की सच्चे मन से आराधना करने पर न केवल मानव के पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं, बल्कि वह सुख शांति को प्राप्त होता है । निसंदेह मां शीतला देवी भोग व मोक्ष प्रदान करने वाली देवी है, जिन की आराधना करने से ब्रहम हत्या जैसे पापा का दोष भी दूर हो जाता है ।
शीतला माता व्रत-विधान
शास्त्रोक्त विधि-विधान से श्रद्धालु जन को प्रातः स्नान करने के पश्चात पवित्रीकरण के निम्न मंत्र जपें
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
इसके बाद मां शीतला देवी के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए विधि अनुसार पूजन करने के बाद उपवास रखना चाहिए । इससे न केवल मां प्रसन्न होती है, बल्कि मानव के समस्त कष्ट भी दूर हो जाते हैं । इस बारे में एक कथा भी है
शीतला माता की कहानी
एक दिन माता शीतला वृद्धा का रूप धारण करके फफोले युक्त शरीर लेकर भिक्षा के लिए ऐसे घर पहुंची, जहां एक बच्चा बेहद बीमार था । साथ ही घर में दुख और अशांति का वातावरण था । माता के भोजन मांगने पर गृह स्वामिनी ने उन्हें बांसी दलिया खाने को दिया । इस पर मां ने प्रसन्न होकर उसे प्रेम पूर्वक ग्रहण किया । मां के आशीष से न केवल परिवार में सुख शांति पुनः लौट आई, बल्कि बीमार बच्चा भी स्वस्थ हो गया ।
शीतला माता को कैसे प्रसन्न करे
शीतला देवी को भोग में शीतल और वासी पदार्थ प्रिय हैं । इसलिए एक दिन पहले पकवान बनाकर अगले दिन भोग लगाया जाता है और माता जी की पूजा की जाती है । पूजन वाले दिन घर में चूल्हा जलाना वर्जित माना जाता है । सुबह उठकर शीतल जल से स्नान करने के पश्चात एक दिन पहले बने पकवान, जैसे पूरी, भात, मिठाई आदि माता को भोग लगाना चाहिए । पुष्पों व अगरबत्तियों से माता शीतला की पूजा अर्चना करनी चाहिए ।
साथ ही शीतला स्त्रोत व मां शीतला माता की कथा ध्यानपूर्वक सुननी चाहिए । इसके बाद स्वयं बासी भोजन का सेवन करना चाहिए । भक्तों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस दिन ठंडा भोजन ही करें । आज भी महिलाएं अपने पुत्रों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए शीतला माता का व्रत रखती हैं । शीतला माता की कृपा से केवल स्वास्थ्य रक्षा ही नहीं होती हे बल्कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा भी मिलती है । क्योंकि शीतला अष्टमी पर किसी मंदिर या धार्मिक स्थान पर जा कर पूजा करने की परंपरा नहीं है, इसलिए यह पूजा घरों में ही करने का विधान है ।