देव शयनी एकादशी, श्रीहरि के शयन की एकादशी

देव शयनी एकादशी, श्रीहरि के शयन की एकादशी

देव शयनी एकादशी स्वयं भगवान विष्णु को भी प्रिय है । जो प्राणी इस दिन भगवान् विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करके उन्हें शयन करवातें हैं, उन्हें शिवलोक और विष्णुलोक की प्राप्ति होती है

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी देव शयनी एकादशी, पद्मा तथा पद्मनाभा एकादशी के नाम से जानी जाती है । इस सम्बन्ध में पुराणों में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर के प्रश्न करने पर कहतें हे, ‘ हे, धर्मराज, यह एकादशी समस्त एकादशियों में सर्व श्रेष्ठ, उत्तम, पावन तथा श्रीहरि को सर्वप्रिय हैं । यह एकादशी कलियुगी जीवों का उद्धार करने वाली उनके पापों-तापों को नष्ट कर सद्गति तथा मोक्ष प्रदान करने वाली कही गई है । इसी एकादशी व्रत का अनुष्ठान करके राजा मन्धाता ने अपनी प्रजा की दुर्भिक्ष तथा अकाल से रक्षा की थी तथा अंत में समस्त सुखों का उपभोग कर श्रीहरि के चरणों में विश्रांति पाई थी ।’ भगवान नारायण स्वयं कहतें हैं, ‘जो व्यक्ति इस एकादशी को स्वर्ण प्रतिमा बनाकर धुप-दीप, नेवैद्य, पंचामृत से अभिषेक आदि करके विधिवत मेरी पूजा-अर्चना करता है, वह इंद्रलोक में जाकर अक्षय सुख प्राप्त करता है । जो प्राणी नित्यप्रति मुझे तुलसीदल अथवा तुलसी मंजरी अर्पित करता है, वह स्वर्ण के विमान पर बैठ कर मेरे लोक को आता हैं । जो धूप-दीप, पुष्प आदि से मेरा पूजन करतें हैं, उन्हें अनंत संपत्ति तथा विष्णुलोक की प्राप्ति होती हैं । जो मेरे चरणामृत को श्रद्धापूर्वक ग्रहण करतें हैं, वह आवागमन चक्र से मुक्त होकर मोक्ष तथा स्वर्ग को प्राप्त करतें हैं । जो भक्त मेरे मंदिर में प्रतिदिन १०८ बार गायत्री मन्त्र का जप करतें हैं, वह सभी पापों से मुक्त होतें हैं । आज के दिन भगवान को शयन कराने का विधान शास्त्रों में वर्णित हैं ।’

पूजन तथा शयन विधि

प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर इस मन्त्र से व्रत का संकल्प लेना चाहिए ।

मम सकुंबस्य सपरिवारस्य आयुरारोग्य ऐश्वर्यादि सकल सुबह फल उत्तरोत्तर अभिवृद्धयर्थ
त्रिविधिताप निवारणार्थ श्रीहरिनारायणाय प्रसन्नार्थ च देवशयनी एकादशी व्रतं अहं करिष्ये ।

इसके बाद कुशासन पर पूर्वाभिमुख बैठकर भगवान विष्णु की प्रतिमा बनानी चाहिए अथवा पीतल तथा सोने से निर्मित प्रतिमा को सर्वप्रथम जलाभिषेक पंचामृत अभिषेक आदि करके लकड़ी की चौकी पर पीला रेशमी वस्त्र बिछाकर स्थापित कर धुप-दीप, गंध अक्षत, नैवेद्य अदि से पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन-अर्चन कर विष्णु सहस्त्रनाम अथवा विष्णु सूक्त पाठ करने एवं ‘ॐ नमः नारायणाय’ मन्त्र का जप करते हुए पूर्ण मनोयोग से आरती करके निम्न मंत्र से स्तुति करनी चाहिए ।

यस्य स्मरण यात्रेण जन्मसंसार बंधनात । विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे ।
नमः सर्व भूतानांमादि भूताय भूमृते। अनेक रूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे ।

अथार्त जिनके स्मरण मात्र से ही प्राणी संसार के आवागमन से तथा लोभ, मोह आदि बंधनो से मुक्त होकर परम् गति को प्राप्त करते हैं । उन सर्वशक्तिमान भगवान् को मेरा नमस्कार हैं । सम्पूर्ण जीवों के जो आदिपुरुष हैं तथा विभिन्न रूपों में क्रीड़ा क्रिया करतें हैं, ऐसे भगवान विष्णु को बराबर प्रणाम हैं । तत्पश्चात भगवान को पीले बिस्तर पर तकिया आदि लगाकर विधिवत शयन करना चाहिए । जो श्रद्धालु इस दौरान भूमि पर शयन करतें हैं, उन्हें शिवलोक एवं विष्णुलोक की प्राप्ति होती हैं ।

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