जानिए, व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं, व्रत व उपवास रखने के क्या फायदे हैं
व्रत व उपवास रखने के फायदे
शास्त्रों में व्रत और उपवास की अलग ही महिमा बताई है । व्रतों को स्वास्थ्य व व्यक्तित्व विकास के लिए अच्छा भी बताया गया है और कहा गया है कि इनसे देवो की कृपा भी मिलती है ।
शास्त्रों में कहा गया है, ‘जो कर्म, करता को वृत करें, वह व्रत है ।’ दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो एक तरह के अभीष्ट कर्म में प्रवृत्त होने के संकल्प विशेष को व्रत कहा जाता है ।
व्रत से मनुष्य में श्रेष्ठ कर्म करने की योग्यता का विकास होता है । जीवन के उत्थान और विकास की शक्तियां आत्मविश्वास और अनुशासन की भावना व्रत नियम के पालन से मनुष्य में आती है । व्रत पालन से बढ़ी संयम की वृत्ति से असंयमित जीवन के कारण उत्पन्न त्रुटियों और भूलों का निवारण भी व्रतों को अपनाने में होता है ।
महात्मा गांधी ने भी कहा है, ‘व्रत में अपार शक्ति होती है, क्योंकि उसके पीछे मनोवैज्ञानिक दृढ़ता होती है । कोई भी व्रत लेना बलवान का काम है, निर्बल का नहीं।’
श्रीमद् भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘विषया विनिवर्तन्ते देहिने:।’ यानी निराहारी जीवन या उपवास अथवा व्रत करने वाला मनुष्य सभी विषयों से निवृत्त हो जाता है । वेदों के अनुसार, ‘व्रत और उपवास के नियम पालन से शरीर को तपाना ही तप है।’
व्रतों के प्रकार
शास्त्रों में व्रतों के कई प्रकार बताए गए हैं । हम उपवास भी करते हैं । पर व्रत और उपवास में मूलभूत अंतर यह है कि जहां व्रत में भोजन का सेवन किया जाता है, वही उपवास में पूर्ण रुप से निराहार रहना पड़ता है । व्रत करने के दो उद्देश्य होते हैं, पहले प्रकार का व्रत नित्य कहलाता है, जिसमें किसी प्रकार की कामना नहीं होती । बल्कि जो भक्ती और प्रेम के कारण आध्यात्मिक प्रेरणा से पुण्य संचय के लिए संपन्न किया जाता है ।
यानी जब हम यह नियम बनाते हैं कि महीने य सप्ताह में हम अमुक तिथि के दिन एक समय भोजन करेंगे, फलाहार करेंगे या निर्जल रहेंगे, तो यह नित्य व्रत की गिनती में आता है ।
इसके विपरीत दूसरे प्रकार का व्रत काम्य या नैमित्तिक कहलाता है, जो किसी विशेष कामना या इच्छा को लेकर किया जाता है । जब हम कोई अनुष्ठान, मांगलिक कार्य या शुभ कार्य करते हैं, तो हम जो व्रत करते हैं, वह काम्य या नैमित्तिक व्रत कहलाता है । हिंदू शास्त्रों में अनेक तरह के व्रत हैं :
अयाचित व्रत: बिना किसी प्रकार की कामना किए दिन या रात में एक बार भोजन करने को अयाचित व्रत कहते हैं ।
नक्त व्रत: विशेष रुप से रात को किए जाने वाले व्रत को नक्त व्रत कहते हैं ।
एक भक्त व्रत: आधे दिन, मध्यान, संध्या, इच्छा अनुसार व्रत रखने को एक भक्त व्रत कहते हैं ।
प्रजापत्य व्रत: यह व्रत 12 दिनों में संपन्न होता है, जो 3 दिनों तक भोजन की मात्रा बढ़ाते हुए और अंतिम 3 दिनों में निराहार रहकर किया जाता है ।
चंद्रायण व्रत: यह व्रत चंद्रकला के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है । इसमें भोजन की मात्रा कृष्ण पक्ष में घटती और शुक्ल पक्ष में बढ़ती है । अमावस्या में निराहार रहकर पूर्ण होने वाले इस व्रत को चंद्रायण व्रत कहा जाता है ।
तिथि व्रत: एकादशी, अमावस्या, चतुर्थी आदि तिथि व्रत कहे जाते हैं ।
देव व्रत: गणेश, शिव, विष्णु आदि के लिए रखे जाने वाले व्रत देवव्रत कहलाते हैं ।
वारों के व्रत: सोम, मंगल, बुध, गुरु आदि सप्ताह के दिनों को रखे जाने वाले व्रत वार व्रत कहे जाते हैं ।
प्रदोष व्रत: प्रत्येक मास की त्रयोदशी या प्रदोष के दिन किए जाने वाले व्रत को प्रदोष व्रत कहलाते हैं।