कार्तिक मास का महत्व : कार्तिक मास यानी जप तप का माह
कार्तिक मास को पर्व त्योहारों एवं पूजा पाठ का माह भी कहा जाता है । धार्मिक ग्रंथों में भी इसे हर महा से श्रेष्ठ कहा गया है । इस दौरान किए गए धार्मिक अनुष्ठान हमें अक्षय फल देते हैं
भारतीय हिंदू धर्म संस्कृति एवं धर्म ग्रंथों व पुराणों में कार्तिक मास को मोक्ष तथा पुण्य का महीना कहा गया है । पर बहुत कम लोग जानते हैं की यह भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है । भगवान विष्णु के शयन से चातुर्मास्य का प्रारम्भ और प्रबोधन से इसका समापन होता है । सूर्य के उत्तरायण होने को देव काल तथा दक्षिणायन होने को आसुरी काल कहा जाता है । दक्षिणायन में देव काल न होने के कारण सद्गुणों को क्षरण से बचाने के लिए गंगा स्नान, ध्यान, जप, तप, व्रत, उपासना आदि का विधान शास्त्रों में वर्णित है ।
पुराणों में दिव्य कार्तिक मास के विषय में विशिष्ट वर्णन किए गए हैं । कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि में होते हैं, तब तीर्थराज प्रयाग माघ मास में समस्त तीर्थों द्वारा समर्पित पापों को लेकर कशी जाते हैं और वहां पवित्र पंचनद तीर्थ, जो श्री हरि विष्णु का स्थाई निवास स्थान है, वहां स्नान कर वापस लौटते हैं । इसलिए कार्तिक मास में पंचनद तीर्थ का दर्शन और उसका नाम लेने मात्र से भक्तों के समस्त पापों का क्षय होता है तथा श्री हरि विष्णु की पूजा से जप से ध्यान से परमानंद तथा पुरुषार्थ चतुष्ट्य (धर्म, काम, अर्थ, मोक्ष) की प्राप्ति होती है । स्कंद पुराण में कार्तिक मास की महिमा का वर्णन है
मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन:।
तीर्थं नारायणाख्यं हित्रितयं दुर्लभं कलौ।।
न कार्तिक समा मासो न कृते न सयंयुगम।
न वेद सदृशं न शास्त्रं न तीर्थ गंग या सममं॥
अर्थात कार्तिक के समान कोई मास नहीं है । सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है तथा गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है ।
कार्तिक मास को आध्यात्मिक तथा धार्मिक दोनों ही दृष्टि से पवित्र माना गया है । इस मास में गंगा स्नान से पापों का क्षय तथा यमुना स्नान से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है । इस मास में धार्मिक कृत्यों, अनुष्ठानों, जप, पूजन करने से मनुष्य पितृ लोक, देव लोक तथा मृत्यु तीनों लोकों के ऋण से मुक्त हो जाता है ।
इस मास में दीपदान करने की भी परंपरा है । दीपदान करने से अज्ञानता दूर होती है । इस मास की देवोत्थान एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा का व्रत अक्षय फलदाई है । पूर्ण कार्तिक मास में श्री हरि विष्णु का मानसिक एवं वाचिक जप निरंतर करते रहने से अपार मानसिक शांति और ऊर्जा की प्राप्ति तथा श्रीहरि का सानिध्य प्राप्त होता है ।
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय अथवा ॐ अच्युताय नमः, ॐ केशवाय नमः, ॐ अनन्ताय नमः ।
शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को श्री हरि के साथ तुलसी पूजन, तुलसी विवाह तथा विधिवत पूजन-हवन तथा खीर एवं तिल की आहूति से हवन करने पर विपुल धन संपत्ति एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है । एक तरह से यह माह त्योहारों का भी माह माना जाता है । इस मास में तुलसी पूजन, आंवले वृक्ष का पूजन तथा पीपल का पूजन मनुष्य को प्रकृति के समीप ले जाता है तथा निषिद्ध वस्तुओं का त्याग, उचित खान-पान, आचार-विचार, नियम-संयम, सदाचार का पालन करने से स्वास्थ्य लाभ के दृष्टिकोण के कारण भी यह मास उत्तम तथा कल्याणकारी कहा गया है ।