Dharmik Pravachan: श्रेष्ठता आपके हाथ में !

श्रेष्ठता आपके हाथ में, Dharmik pravachan in hindi

मनुष्य के पैर नरक को और उसका सिर स्वर्ग को छूता है। ये दोनों ही उसकी भावनाएं हैं। इन दोनों में से कौन सा बीज वास्तविक बनेगा, यह उस पर, केवल उस पर निर्भर करता है। मनुष्य की श्रेष्ठता स्वयं उसके हाथों में है। प्रकृति ने तो उसे मात्र संभावनाएं दी है। वह स्वयं का स्वयं ही सृजन करता है। जो जीवन में ऊपर की ओर नहीं उठ रहा है, वह अनजाने और अनचाहे ही पीछे और नीचे गिरता जाता है।

मैंने सुना है कि किसी सभा में चर्चा चली थी कि मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ है, क्योंकि वह सब प्राणियों को वश में कर लेता है। किंतु, कुछ का विचार था कि मनुष्य तो कुत्ते से भी नीचा है, क्योंकि कुत्तों का संयम मनुष्य से कई गुना श्रेष्ठ होता है।

इस विवाद में हुसैन उपस्थित थे। दोनों पक्ष वालों ने उनसे निर्णायक मत देने को कहा। हुसैन ने कहा था,’मैं अपनी बात कहता हूं। उसी से निर्णय कर लेना। जब तक मैं अपना चित्त और जीवन पवित्र कर्मों में लगाए रहता हूं, तब तक देवताओं के करीब होता हूं। किंतु, जब मेरा चित्त और जीवन पापमय होता है, तो कुत्ते भी मुझ जैसे हजार हुसैनों से श्रेष्ठ होते हैं।’ मनुष्य मृणमय और चिन्मय का जोड़ है। जो देह का और उसकी वासनाओं का अनुसरण करता है, वह नीचे से नीचे उतरता जाता है। जो चिन्मय के अनुसंधान से में रत होता है, वह अंततः सच्चिदानंद को पाता है और स्वयं भी वही हो जाता है।
(ओशो)

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