नैतिक कहानी: अंधविश्वास बनाम आत्मविश्वास

नैतिक कहानी: अंधविश्वास बनाम आत्मविश्वास

बात काफी पहले की है। मेरे गांव में एक पंडित जी रहते थे। वह हमेशा लोगों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करते थे।

एक दिन उन्होंने लोगों को बताया कि कल के दिन प्रातः से सायंकाल तक जो कोई भी गंगा स्नान करेगा, वह पत्थर का हो जाएगा। दूसरे दिन सुबह से ही पंडित जी और गांव वाले नदी के किनारे खड़े थे। जो कोई भी आता, उसे तुरंत रोक दिया जाता। यह कहकर कि पानी में स्नान करने से तुम पत्थर के बन जाओगे। ऐसा करते-करते दोपहर तक नदी किनारे काफी भीड़ इकट्ठा हो गई। पास ही एक खेत में एक मजदूर बड़ी शिद्दत से अपना काम कर रहा था। वह दूर से ही सारा मंजर देख रहा था। पर काम का बोझ इतना अधिक था। कि वह भीड़ का हिस्सा नहीं बन पा रहा था।

आते-जाते राहगीरों से उसे पता चला कि माजरा क्या है? वह पंडित जी और उनकी भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं करता था। लिहाजा उसने सूर्यास्त से पहले वहां जाने का निश्चय किया। जब वह काम करते-करते थक गया, तो दौड़ लगाकर गया और नदी में कूद गया। इधर पंडित जी और सारे लोगों की उसे रोकने की चेष्टा विफल हो गई। थोड़ी देर बाद जब वह नदी से सकुशल बाहर निकला, तो लोग हैरत में पड़ गए।

अब पंडित जी की झेंपने की बारी थी। लोग पंडित जी को बुरा भला कहने लगे, पंडित जी ने वहां से निकलने में ही भलाई समझी। इसके बाद से गांव में पंडित जी की बातों पर लोगों ने विश्वास करना छोड़ दिया। इस तरह अनपढ़ मजदूर ने अपने आत्मविश्वास के बल पर अंधविश्वास को ठिकाने लगा दिया।

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