एक बार गुरु नानक देव जी यात्रा पर निकले। इस दौरान वह एक गांव में पहुंचे। उनके साथ उनके चार प्रिय शिष्य भी थे। जब नानक जी गांव में पहुंचे, तो उनका खूब स्वागत हुआ। उसी गांव में एक गरीब महिला रहती थी। उसने नानक को शिष्यों सहित अपने घर आने का निमंत्रण दिया। नानक जी तुरंत उस महिला के घर पहुंचे।
नानक को अपने घर देखकर महिला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने बड़े प्यार से उनके लिए शर्बत बनाया। पर उसके घर छन्नी नहीं थी। इसलिए उसने पुरानी व गंदी दिखने वाली धोती के टुकड़े से शर्बत को छान दिया। अब उसने गुरु नानक व उनके शिष्यों को शरबत पीने को दिया। गुरुजी तो वह शर्बत आराम से पी गए। जब शिष्य ने गुरुजी को शर्बत पीते हुए देखा, तो उन्होंने भी मन मसोसकर शर्बत पी लिया। घर से निकलने के बाद एक शिष्य को उल्टी हो गई। उसने तुरंत शर्बत को दोष दिया। इसके कुछ देर बाद ही दूसरे से शिष्य को भी उल्टी हो गई। फिर तीसरा शिष्य भी रास्ते में उल्टी कर बैठा। अंत में चौथे शिष्य ने भी शर्बत को दोष देते हुए उल्टी कर दी।
अब चारो शिष्यों ने व्यंग्यात्मक लहजे में गुरु जी को कहा, “अब आपकी बारी है” नानक जी ने कहा नहीं शिष्यों, आपने तो उस महिला द्वारा दिया गया गन्दा शरबत पिया है। जबकि मैंने उस महिला द्वारा दिया गया सम्मान और प्रेम का घूंट पिया है। मुझे क्यों उल्टी होगी ? गुरु जी के यह वचन सुनकर शिष्य दंग रह गए। समझाते हुए कहा, संसार में प्रेम व् स्नेह से बड़ी कोई चीज नहीं है।