वृक्षारोपण के लाभ-
शास्त्रों में वृक्षारोपण करना धर्म सम्मत माना गया है । आंवले, शमी, वट, पीपल आदि वृक्षों की तो विधिवत पूजा कर उन्हें सम्मान दिया जाता है ।
वृक्ष रोपण के लिए हस्त, पुष्य, अश्विनी, विशाखा, मूल, चित्रा, अनुराधा, शतभिषा नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं । इसके अलावा वृक्षारोपण के दौरान शुभ तिथि एवं वार का भी ध्यान रखना लाभकारी होता है ।
वृक्षारोपण का मंत्र
ॐ वसुधेति च शीतोति पुण्यदेति धरेति च नमस्ते सुभगे देवि द्रुमोडंय त्वयि रोपते ॥
वृक्षारोपण क्यों आवश्यक है-
यदि पृथ्वी पर वृक्ष न हों, तो सारे जगत में शून्यता भर जाएगी । वृक्ष केवल वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि पौराणिक रूप में भी हमारे लिए स्वीकार्य हैं । हिंदू धर्म में तो पीपल, शमी, आंवला, बढ़, पाकड़ अदि वृक्षों की पूजा एवं उनसे जुड़े त्यौहार का भी जिक्र किया गया है ।
वेदों, पुराणों और आयुर्वेद से संबंधित ग्रंथों और धार्मिक ग्रंथों में वृक्षों की महिमा का वर्णन किया गया है और कहा गया है कि वृक्षारोपण से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । शास्त्रों में तो वृक्षारोपण के साथ-साथ वृक्षों को नष्ट करने वाले के लिए दंड का भी उल्लेख किया गया है ।
वृक्षों को सामूहिक रुप से एकत्रित करके उसे बगीचे का रूप देने का पहला वर्णन भी शास्त्रों से ही प्राप्त होता है । भागवत पुराण में वृक्षों की उत्पत्ति के विषय में भी वर्णन किया गया है कि दक्ष प्रजापति की साठ में से तेरह कन्याओं का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ था, उनमें से अदिति से देवगढ़ दिति से दैत्य, दनु से दानव, सुरसा से सर्प तथा इला से वृक्ष की उत्पत्ति हुई । इसलिए पुराणों में वृक्षों को कश्यप जी की संतान कहा गया है ।
वृक्षारोपण के विषय में एक कथा भी प्रसिद्ध है कि सबसे पहले मान्यकुंज देश के राजा श्रंगवान ने भारत भूमि पर लाखों वृक्षों को लगवाया और प्रजा को उसकी रक्षा और महत्व के बारे में बताते हुए उसे धार्मिक आस्था और पुण्य के साथ जोड़ दिया ।
वृक्षारोपण से पुण्य लाभ-
मत्स्य पुराण में कहा गया है कि एक वृक्ष लगाना 10 पुत्रों को उत्पन्न करने के समान है । एक वृक्ष कई लोगों को आश्रय व जीवन देता है । हमेशा से ही वृक्ष मानव के लिए कल्याणकारी हैं, इसलिए ऋग्वेद में भी समस्त मंगल कार्यों के दौरान विभिन्न वृक्षों के पल्लवों के पूजन, स्पर्श, स्मरण तथा वृक्षारोपण का महत्व बताया गया है। पीपल को भगवान श्री कृष्ण अपना स्वरूप बताते हुए कहते हैं, ‘हे अर्जुन, वृक्षों में मैं पीपल हूँ । इसका पूजन तथा रोपण अनंत पुण्यदायक है । इसे लगाने वाले को हजारों कर्मों के बराबर पुण्य और मेरा सानिध्य मिलता है ।
स्कंध पुराण में आंवले के वृक्ष को पवित्र कहा गया है । इस वृक्ष के तने में भगवान रुद्र, शाखाओं में नदी तथा प्रशाखाओं में देवताओं का वास बताया गया है । इस वृक्ष का रोपण करने वाले भक्तों को सभी देवताओं के पूजन के बराबर पुण्य प्राप्त होता है । नि:संतान दंपत्ति आज भी पुत्र की प्राप्ति के लिए आंवले के वृक्ष का पूजन करते हैं । इस वृक्ष की छाया में पिंड दान करने वालो के पूर्वज स्वर्ग में निवास करते हैं । कुआं, तालाब, बगीचा, धर्मशाला, प्याऊ, अन्नदान और वृक्षारोपण करने का मतलब है सात संतान । मनीषियों के अनुसार हर वृक्ष को लगाने का एक शुभ मुहूर्त होता है । वृक्ष रोपण के लिए हस्त, पुष्य, अश्विनी, विशाखा, मूल, चित्रा, अनुराधा, शतभिषा नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं । इसके अलावा वृक्षारोपण के दौरान शुभ तिथि एवं वार का भी ध्यान रखना लाभकारी होता है ।
वृक्षारोपण का मंत्र
ॐ वसुधेति च शीतोति पुण्यदेति धरेति च नमस्ते सुभगे देवि द्रुमोडंय त्वयि रोपते ॥