गुरु की आवश्यकता:-
गुरु की आवश्यकता अकथनीय हैं । आध्यात्मिक मार्ग चारों ओर से कठिनाइयों से आकीर्ण है । गुरु साधक को उचित मार्ग का निदर्शन करा देगा और इससे सब कठिनाइया और विघ्न – वाधाए दूर हो जाएगी है ।
गुरूमुख से सुने गए शब्दों में पूर्ण श्रद्धा रखो:-
गुरु, ईश्वर, ब्राह्मण , सत्य तथा ॐ एक ही है । गुरु की सेवा भक्तिसहित करो । उसको सब प्रकार से प्रसन्न रखो । अपने चित्त को पूर्णत: गुरु की सेवा में लगा दो । उनकी आज्ञा का पालन अटूट विश्वास के साथ करो । गुरूमुख से सुने गए शब्दों में पूर्ण श्रद्धा रखो । तभी तुम अपने में सुधार कर सकोगे । इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा उपाय नहीं है ।
गुरु को ईश्वर का ही अवतार समझ लेना चाहिए:-
अपने गुरु की पूजा ईश्वर भाव से करनी चाहिए । यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि ईश्वर और ब्राह्मण की सभी शक्तिया गुरु में ही विद्यमान है । गुरु को ईश्वर का ही अवतार समझ लेना चाहिए । तुम्हे कभी भी उसके दोषो की नहीं देखना चाहिए । तुम्हें उसमें केवल देवत्व के दर्शन ही करने चाहिए । जब तुम ऐसा करोगे, तभी ब्रहा की प्राप्तिसम्भव होगी । धीरे -धीरे गुरु का शरीर रूप तिरोभूत हो जायगा ओर तुम उसके व्यापक होने का अनुभव करोगे । अर्थात् तुम्हे ऐसा लगेगा जैसे वह समस्त संसार में समाया है । फिर क्या है तुम स्थावर-जंगम, जड़-चेतन सभी में गुरु के ही दर्शन करोगे । इसके अतिरिक्त संस्कारो से छुटकारा पाने का कोई दूसरा उपाय नहीं है । केवल गुरु की सेवा के द्वारा ही तुम बन्धनों को तोड़ सकते हो ।
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जो साधक पूर्ण भक्ति के साथ गुरु की पूजा करता है, शीघ्र ही अपने को निर्मल तथा स्वच्छ बना लेता है । यह आत्म-शुद्धि का सबसे सरल तथा सबसे अचूक उपाय है ।
गुरु से प्राप्त किया हुआ मंत्र साधक पर अनोखा असर डालता है:-
यदि अपने गुरु से मन्त्र-दीक्षा लेते हो तो बहुत ही अच्छा है गुरु से प्राप्त किया हुआ मंत्र साधक पर अनोखा असर डालता है । वास्तव में मन्त्र के साथ गुरु अपनी शक्ति भी अपने शिष्य को दे देता है । यदि तुम्हें कोई गुरु नहीं मिलता हो तो अपनी इच्छा और पसंद के अनुसार कोई भी मंत्र चुन लो और उसका श्रद्धा तथा भावसहित नित्यप्रति जप करों । इससे भी आत्म-शुद्धि होगी ईश्वर के दर्शन होंगे ।