किसी गांव में एक जमीदार रहता था । उसके पास सैकड़ों बीघा जमीन थी । घर में सारे सुख के साधन थे । नौकर हमेशा मालिक की सेवा में लगे रहते थे । गांव के निकट ही एक मंदिर था, जहां एक भिखारी बैठा रहता था । वह भिखारी दो दिन से भूखा था । किसी ने उसे खाना नहीं दिया था ।
एक दिन जमीदार अपने नौकरों के साथ वहां से गुजर रहे थे कि उनकी नजर उस भिखारी पर पड़ी । जमीदार को देखते ही भिखारी बोला- ‘मालिक कुछ खाने को दे दो । दो दिन से कुछ भी नहीं खाया । भगवान तेरा भला करेगा ।’ भिखारी के गिड़गिड़ाने पर जमीदार को दया आ गई । उसने अपने नौकरों को आदेश दिया उस भिखारी को रोज खाना दें । इस तरह जमीदार के आदेश पर भिखारी को रोज खाना दिया जाने लगा ।
एक दिन डाकुओं ने जमीदार के घर पर हमला बोल दिया । घर के सारे नौकर-चाकर डर से भाग गए, अकेले से जिमींदार ही बचे । डाकुओं ने तिजोरी की चाबी मांगी, तो जमीदार ने उसे देने से इनकार कर दिया । किसी प्रकार जिमींदार अपनी जान बचाकर वहां से भाग निकला और उसी मंदिर में शरण ली, जहां पर भिखारी बैठा करता था ।
डाकुओं को मंदिर की तरफ आता देख भिखारी मंदिर में छिपे जमीदार के पास गया और उनसे उनका कपड़ा मांगा । फिर जमीदार के कपड़े पहन कर भिखारी मंदिर से बाहर गया । डाकुओं ने समझा जमीदार जा रहा है, उन्होंने भिखारी पर गोली चलाई । जमीदार को जब यह बात पता चली तो, बहुत दुखी हुआ । नदी किनारे चित्त पड़े भिखारी को देख जमीदार रोने लगा और कहा- ‘तुमने मेरे नमक की कीमत जान देकर चुकाई ।’