जप के लिए आसन:-
मंत्र जप आधे घंटे से लेकर प्रारम्भ करना चाहिए पदम, सिद्ध सुखासन अथवा स्वस्तिक आसन पर बैठो । धीरे धीरे करके मंत्र जप का समय बढाते जाओ और तीन घंटे तक कर दो लगभग एक साल के अन्दर तुम को – आसन-सिद्धि प्राप्त हो जायेगी, अर्थात् तुम्हें उस विशेष श्रासन पर बैठने से कष्ट नहीं प्रतीत होगा । सुम स्वाभाविक रूप से ही उस आसन पर बैठ जाया करोगे । शरीर को किसी भी सरल तथा सुखपूर्वक अवस्था में स्थिर रखने को आसन कहते हैं-स्थिरम सुखमासनम् ।
अपने सर गर्दन और धड़ को बिल्कुल सीधा ररवो । जमीन पर चाहे तह करके एक कम्बल बिछा लो । उस कम्बल पर एक मुलायम सफेद कपड़ा बिछाओ । यदि तुम्हे पंजों और सर सहित मृगछाला मिल जावे, वह कम्बल से अधिक अच्छी है । मृगचर्म के अनेको लाभ हैं । वह शरीर में विद्दुतशक्ति को उत्पन्न करती हैं और उसको शरीर से निकलने से रोकती है । मृगचर्म में आकर्षणशक्ति रहती है ।
दिशा की आवश्यकता
आसन पर बैठने पर मुंह उत्तर या पूरब की ओर कर लो। नए नए साधक को इसका पालन अवश्य करना चाहिए । उत्तर को ओर- मुँह करने से तुम हिमालय – के ऋषियों के सम्पर्क में आओगे ओर उनके सम्पर्क से तुम्हारा अदभुद विकास होगा ।
पदमासन— अपने आसन पर बैठ जाओ । अब अपना बांया पैर दाहिनी जंघा पर रखो और दाहिना पैर बांई जंघा पर रखो । हाथ घुटनों पर रखो। बिलकुल सीधे बैठो । यही पद्मासन है ।
इस प्रकार आपको आसन सिद्धि प्राप्त होने तक निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए । अगर फिर भी आप का मन विचलित होता हे तो गुरु का मार्ग दर्शन ले सकते है । क्यूकी गुरु कठिन से कठिन काम को भी आसानी सरल बना देता है । अपने गुरु से आपको अन्य अनेक प्रकार के आसान सिद्धि प्राप्त करने के उपाए प्राप्त हो जाये गे ।