साधना प्रकरण में जप की संख्या का महत्व

साधना प्रकरण में जप की संख्या का महत्व

प्रत्येक व्यक्ति अनजाने में ही सोअहं मन्त्र २४ घंटो २२६०० बार जपता है । तुम्हे ऐसी प्रत्येक श्वास के साथ अपना इष्ट मंत्र कहना चाहिए । बस फिर क्या, तुम्हारी मन्त्र-शक्ति खूब बढ़ जाएगी और तुम्हारा मनशुद्ध हो जाएगा ।

तुम्हे जप संख्या २०० से लेकर 500 माला तक प्रतिदिन बढानी चाहिए । जैसे तुम दो बार भोजन करने के लिए उत्सुक रहते हो वैसे ही दिन में चार बार जप करने क लिए भी उत्सुक रहना चाहिए । मृत्यु किसी भी समय आ सकती है ओऱ उसका आगमन असूचित ही होता है । अत: सदा राम – राम का जप करते हुए मृत्यु से मिलने के लिए तैयार रहना चाहिए । जहाँ कहीं भी जाओ, जप करते रहो । उस अन्तर्यामी भगवान् की कभी न भूलो, जो तुम्हें भोजन और वस्त्र देता है ओर हर प्रकार से तुम्हारी देखभाल करता हैं । तुम शौचालय में भी जाप कर सकते हो, लेकिन वह जप मानसिक होना चाहिए । महिलाये मासिक धर्म के समय भी जप कर सकती हैं । जो लोग निष्काम भाव से जप करते हैं, उनके लिए किसी प्रकार की व्यवस्था – सम्बन्धी रूकावटें नहीं हैं । रुकावटें तो केवल वहां है, जहाँ सकाम भाव से जप किया जाता हैं, अर्थात् जो लोग पुत्रादि के लिए जप का अनुष्ठान करते हैं ।

उपांशु और बैखरी जप की अपेक्षा मानसिक जप में अधिक समय लगता हैं, लेकिन कुछ लोग मानसिक जप कुछ जल्दी कर लेते हैं इससे कुछ घंटो के पश्चात मन बिल्कुल बेकार हो जाता है और फिर जप कर कार्य यथावत् नहीं चल पाता । जो लोग घड़ी के आधार पर जप की गणना करते हैं, उनको इस प्रकार की मानसिक सुस्ती के आ जाने पर माला से जप करना आरम्भ कर देना चाहिए ।

जप की प्रगति मध्यम होनी चाहिए । जप की प्रगति पर ही चित्त की एकाग्रता और भावपूर्णता निर्भर रहती है । जाप करते समय उच्चारण
की शुद्धि अनिवार्य है । प्रत्येक अक्षर का उच्चारण स्पष्ट ओर शुद्ध होना चाहिए । किसी भी शब्द को खंडित नहीं करना चाहिए । कुछ लोग कुछ ही घंटो में एक लाख जप कर डालते हैं । ये इतनी जल्दी जप करते है कि मानों उन्हें कोई ठेके का काम समाप्त करना है । ईश्वर के साथ ऐसी ठेकेदारी ठीक नहीं है । इससे ह्रदय में भक्ति का आविर्भाव नहीं ही सकेगा । जिस जप से ह्रदय में भक्ति का आविर्भाव नहीं होता, वह जप किया न किया, बराबर हैं । हाँ, जब तुम्हारा मन सुस्त हुआ जारहा हैं, उस समय तेजी से जप कर सकते हो, जिस समय मन चलायमान् हो रहा हैं, उस समय भी जप की चाल को तेज कर सकते हो, किन्तु यह चाल ज्यादा देर तक नहीं, आधे घएटे तक ही रखनी चाहिए ।

जो लोग पुरश्चरण करते है और नित्य के जप का हिसाब रखते है, उन्हें अपना हिसाब ठीक-ठीक और सही रखना चाहिए । उनकों अपने मन को बहुत ही सावधानी से देखना चाहिए ओर यदि वह जाप करते – करते सुस्त हो जाता है तो उनको और अधिक जप करना चाहिए, जिसे यह अन्यमनस्क न हो जाय । अच्छा तो यह है कि पुरश्चरण करने वाला साधक केवल उसी संख्या को हिसाब में रखे, जिसको मन लगा कर किया गया है ।

चौदह घंटो में हरि: ओउम की ३००० मालाए पूरी हो सकती हैं । श्री राम मन्त्र का जाप सात घएटे में एक लाख बार किया जा सकता है । आधे घंटे में १०००० वार श्री राम का जप किया जा सक्ता है । जाब तुम अपना मंत्र १३ करोड़ बार जप लोगे, उस समय तुम्हे इष्ट देवता के दर्शन होंगे । यदि तुम वास्तव में ऐसा चाहते हो और तुममें विश्वास और श्रद्धा हैं तो तुम १३ करोड़ जप चार साल में समाप्त कर सकते हों ।

पुरश्चरण करने वाले को दूध और फल पर रहना चाहिये । ऐसा करने से मन सात्विक रहता है और आध्यात्मिक उन्नति भी अच्छी तरह होती है । मोक्ष के लिये निष्काम भाव से जो जप किया जाता है उसमें किसी नियम का बन्धन नहीं रहता । कामना विशेष के लिए ही जप करने वालों के लिये नियमों का बंधन है । पुरश्चरण के समय अखण्ड मौन व्रत का पालन करने से वड़ा लाभ होता है । जो लोग पुरे पुरश्चरण काल में मौन व्रत करने में असमर्थ हो वे महीने में एक ही सप्ताह का मौन रखें और यह भी न कर सकें उन्हें प्रति रविवार को मौन रखना चाहिये । जो लोग पुरश्चरण करते हों उन्हें प्रतिदिन का नियमित जप पूरा करके ही आसन पर से उठना चाहिये । उन लोगों को नियमित जप की संख्या पूरी होने तक एक ही आसन पर बैठना चाहिये । जप की गिनती माला, ऊँगली या घडी से हो सकती है ।

यत्रि आप ४००० गायत्री प्रतिदिन जपे एक वर्ष सात महीने और पचीस दिनों में पूरा हो सकता है । यदि आप धीरे-धीरें जप करें तो दस घंटे में ४००० गायत्री मंत्र एक दिन में जपा जा सकता हैं ।

ब्रम्हा गायत्री में चौबीस अक्षर होते हैं । इस तरह गायत्री के एक पुरश्चरण में २४ लाख गायत्री मंत्र का जप करना पड़ता है जब तक की २४ लाख जप आप पूरा न कर ले आप प्रति दिन नियम से ४००० गायत्री जापे जाये । इसमें नागा न हो । अपने मानस रुपी दर्पण का मल साफ कर डालो और आदृयात्मिक वीज बोने के जिये धरती तैयार कर लो ।

जैसे प्रणव सन्यासियों के लिए है वैसे ही ब्रम्हचारियो और ग्रहस्थो के लिए गायत्री है । प्रणव से जो फल प्राप्त होता है वही फल गयात्री जप से भी प्राप्त होता है । जिस पद को परमहंस सन्यासी प्रणव जप कर के प्राप्त करते है वही पद ब्रम्हा-चारी और गृहस्थ गायत्री जप कर प्राप्त कर सकते है ।

प्रातःकाल चार बजे ब्रह्मा-मुहूर्त में उठ कर जप और ध्यान करना आरम्भ कर दो । यदि इतना सवेरे न उठ सको तो सूर्यौदय के पूर्व उठ कर जप और ध्यान अवश्य करो ।

नित्य तीन या चार हजार गायत्री जपना वड़ा लाभदायक होता है । तुम्हारा ह्रदय शीघ्र शुद्ध हो जायगा । यदि इतना जप न हो सके तो कम से कम १०८ गायत्री मंत्र प्रति दिन जप लिया करो, अर्थात ३६ सबेरे, ३६ दोपहर और ३६ संध्या को । सूर्योदय और सूर्यास्त के संधिकाल के उस समय ध्यान और जप का अभ्यास करने से मन शीघ्र उन्नत होकर सतोगुण से पूर्ण हो जाता है । इस समय बिना प्रयास के मन एकाग्र हो जाता है ।

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