अमला एकादशी दे पुण्य अपार – Amalaki Ekadashi Vrat in hindi

Amalaki Ekadashi Vrat

आमल की एकादशी व्रत का महत्व

 
सभी एकादशीयों में अमला एकादशी का भी महत्वपूर्ण स्थान है । इस एकादशी को करने से न सिर्फ मार्ग की बाधाएं दूर होती है, बल्कि धन-धान्य और ऐश्वर्य भी मिलता है । भगवान श्री राम ने भी अपनी कामना की पूर्ति के लिए यह एकादशी की थी ।

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी अमला एकादशी के नाम से जानी जाती है । पुराणों के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के थूकने पर चंद्रमा के समान कांति मान बिंदु पृथ्वी पर गिर गया, जिससे आमल अर्थात आंवले का एक वृक्ष पृथ्वी पर उत्पन्न हुआ । उसी समय भगवान ने सृष्टि के लिए ब्रह्मा जी को उत्पन्न किया, उन्होंने देव, दनुज-दानव, यक्ष गंधर्व, किन्नर, नाग, मनुष्य तथा महर्षियों को उत्पन्न किया ।

उनमें से देवता तथा महर्षि उसी स्थान पर पहुंचे जहां आंवले का वृक्ष था । तभी आकाशवाणी हुई । हे महर्षियों, ‘यह अद्भुत तथा सर्वश्रेष्ठ आंवले का वृक्ष है, जो भगवान विष्णु का अत्यंत प्रिय है । अतः जो भी व्यक्ति इस पुण्य दाई आमल की एकादशी के व्रत के साथ आंवले के वृक्ष का स्मरण करेगा । उसे सहस्त्रों गोदान के तुल्य उत्तम फल की प्राप्ति होगी ।’ शास्त्रों में माना गया है कि इस वृक्ष के मूल में विष्णु, शीर्ष पर ब्रह्मा, तने में रुद्र, शाखाओ में मुनिगण, टहनियों में देवता, फूलों में मरुदगण, पत्तों में वसु और फलों में समस्त प्रजापतियों का वास है ।

कुल मिलाकर आंवला के पेड़ में भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप का वास होता है । और यह एकादशी करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है ।

अमला एकादशी व्रत से लाभ

 
वैसे भी आमला एकादशी को शत्रुओं से रक्षा करने वाली समस्त पापों कष्टों को नष्ट करने वाली, व्याधियों को दूर करने वाली तथा शत्रुओं से रक्षा करने वाली, कल्याणकारी, धन-धान्य, ऐश्वर्य देने वाली कहा गया है । ऐसी कहानी है कि भगवान श्रीराम ने भी कामना पूर्ति हेतु आंवले की एकादशी के दिन विधिवत व्रत धारण किया था ।

आमल की एकादशी व्रत विधि

 
दशमी तिथि की रात्रि में व्रत ग्राह करते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए शयन करना चाहिए । एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ पीत वस्त्र धारण कर आंवले के वृक्ष के समीप या अपने घर में ही कुशासन पर बैठकर पूर्वा विमुख हो आंवले का ध्यान करते हुए पूर्ण मनोयोग के साथ निम्न मंत्र का जप, हाथ में जल, अक्षत, पुष्प आदि लेकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके संकल्प करें ।

मंत्र:-

 

ममकायिक वाचिक मानसिक,
सांसर्गिक पात का पपातकदुरित
क्षयपूर्वक श्रुति स्मृति
पुराणोत्फल प्राप्ये । श्री जनार्दन
प्रीति कामनाये आमल की
एकादशी व्रतहं करिष्ये ।

अब कलश तथा भगवान विष्णु की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार धूप, दीप, गंध, अक्षत, पुष्प, वस्त्र, उत्तम फल, नैवेद्य आदि से भगवान का सविधि पूजन उनके नामों के साथ उच्चारण करते हुए करना चाहिए । ॐ अच्युताय नमः, ॐ अनंताय नमः ॐ केशवाय नमः ॐ माधवाय नमः ॐ विष्णवे नमः आदि । इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन कर उसकी 108 बार या 28 बार परिक्रमा करनी चाहिए । वर्णित है जो भी व्यक्ति आमल की एकादशी का व्रत रखकर एकादशी व्रत की कथा सुनता है, दूसरों को सुनाता है व रात्रि जागरण करता है । उसे अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है । जो हजारों वर्षों तक तप करने पर भी प्राप्त नहीं होती है । द्वादशी के दिन भगवान की आरती प्रदक्षिणा करके परम तत्व परम विश्रांति प्रदायक श्री हरि विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का पालन करना चाहिए । इस संबंध में महात्मा वशिष्ठ और राजा मांधाता की कहानी भी प्रचलित है ।

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