पंचामृत के फायदे:
शास्त्रों में देव पूजा होने के बाद तीर्थ ग्रहण यानी पंचामृत ग्रहण करना महत्वपूर्ण कार्य माना गया है । श्रद्धा पूर्वक पंचामृत का पान करने वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार की सुख- समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है एवं उसका शरीर मृत्यु के पश्चात जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है । चिकित्सा शास्त्र के अनुसार गाय का दूध, घी, दही, शर्करा और शहद के मिश्रण से रोग का निवारण करने वाले गुण विद्यमान होते हैं । पंचामृत में रुद्राक्ष डालकर हृदयरोग परिहार के रूप में उसका उपयोग किया जा सकता है ।
पंचामृत ग्रहण करने की विधि:
पंचामृत लेते समय हाथ को गोकर्ण मुद्रा में रखें । यानी अंगूठे के पास तर्जनी अंगुली को थोड़ा झुकाकर उसके पीछे भाग पर एक के पीछे तीन अंगुलियां रखें । साधक को भगवान का पंचामृत हथेली के गहरे हिस्से में लेकर मुंह से बिना आवाज निकाले प्राशन करना चाहिए । तीर्थ के रूप में लिया जाने वाला पंचामृत सिर्फ एक ही बूंद लें । कारण-तीर्थ का रूपांतर लार में हो, मल में नहीं ।
पंचामृत के पांच तत्वों का महत्व
(1.) दूध पंचामृत का प्रथम भाग है, जो शुभ का प्रतीक है । इसका अर्थ है, हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए ।
(2.) दही भी दूध की तरह सफेद होता है । लेकिन इसकी खूबी है, यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है । दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि पहले हम निष्कलंक हों सद्गुण अपनायें और दूसरों को भी अपने जैसा बनायें ।
(3.) घी को स्नेह का प्रतीक माना गया है । स्नेह और प्रेम हमारे जीवन को सफल बनाते हैं । सभी से हमारे स्नेहयुक्त सम्बन्ध हो, यही भावना हमारे अंदर होनी चाहिए ।
(4.) शहद मीठा होने के साथ ही औषधीय गुण वाला होता है । इसलिए इसे शक्तिशाली भी माना गया है । निर्बल ब्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है । शहद इसका ही प्रतीक है ।
(5.) शक्कर का गुण है मिठास । शक्कर चढ़ाने का अर्थ है, जीवन में मिठास घोलें । मिठास, प्रिय बोलने से आती है । प्रिय बोलना सभी को अच्छा लगता है और इससे मधुर व्यवहार बनता है ।
घर में स्थित देवताओं को पंचामृत प्राशन करने से पूर्व शंख में थोड़ा पानी रखकर शंख से देवता की आरती उतारकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें
मंत्र:
शंखमध्ये स्थितं तोयं भ्रमितं विष्णोधरि, अङक्लग्नं मनुष्याणां महापापं व्यपोहति ।