कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी देवोत्थान, तुलसी विवाह और भीष्म पंचक एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इन तीनों व्रतों की बड़ी महिमा है और कार्तिक माह में इन्हें करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं।
हिंदुओं के सारे शुभ कार्य संसार के पालनहार भगवान विष्णु के जागृत अवस्था में ही होने का विधान है। शास्त्रों में वर्णित है कि आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु 4 मास तक पाताल लोक में शयन करते हैं और कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को उठते हैं।
असाढ़ से कार्तिक मास तक की अवधि को चातुर्मास कहते हैं, इन 4 महीनों तक भगवान विष्णु क्षीरसागर की अनंत शैय्या पर शयन करते हैं, इसलिए कृषि के अलावा विवाह आदि शुभ कार्य इस समय तक बंद रहते हैं, धार्मिक दृष्टि से यह 4 मास भगवान विष्णु का निद्राकाल माना जाता है।
कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान उठते हैं। इसलिए इस तिथि के बाद ही विवाद आदि शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य की मिथुन राशि में आने पर भगवान श्री हरि विष्णु शयन करते हैं और तुला राशि में जाने पर भगवान शयन कर उठते हैं। भगवान जब सोते हैं तो हिंदू धर्म में विवाह, यज्ञ, आदि क्रियाएं संपन्न नहीं की जाती है। यज्ञोपवित आदि संस्कार, विवाह, दीक्षा ग्रहण, यज्ञ, नूतन, गृह प्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म हैं, वे चातुर्मास में त्याज्य होते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो हरिशयन के समय इन चार मास में बादल और वर्षा के कारण सूर्य और चंद्रमा का तेज क्षीण हो जाना ही उनके शयन का ही एक रूप है।
चातुर्मास में विविध प्रकार के कीटाणु, सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका प्रमुख कारण है। देवोत्थान एकादशी के बारे में एक कथा भी इस तरह है।
कि एक बार भगवान विष्णु ने एक लंबे संघर्ष के बाद शंखासुर नाम के भयानक दैत्य का वध कर दिया। इस लड़ाई में काफी अधिक थक जाने के कारण भगवान विष्णु उसी दिन सो गए थे। इसके बाद वह 4 मास के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे थे, इसलिए उनके जागने के प्रतीक के रूप में देवोत्थान एकादशी को भव्य पूजा अर्चना करने का विधान प्रचलित हुआ। हालांकि अलग-अलग जगहों में इसे मनाने या इस दिन की पूजन की विधि थोड़ी अलग है।
किसी प्रांत में इस दिन ईख के खेतों में जाकर सिंदूर, अक्षत आदि से ईख की पूजा की जाती है और इसके बाद भक्त ईख चूसते हैं। इस दिन भगवान का कीर्तन करना चाहिए, साथ ही शंख, घड़ियाल या थाली बजाकर इस प्रकार भगवान को जगाना चाहिए, उठो देवा, बैठो देवा, अंगुरिया चटकाओ देवा।
कार्तिक एकादशी को भगवान विष्णु 4 माह की निद्रा से जागते हैं। इस दिन से हिंदुओं के सारे मंगल कार्य शुरू हो जाते हैं। इस दिन ईख के पूजन का भी विधान है।