वास्तु शास्त्र में दिशा ज्ञान – Directions in Vastu Shastra in hindi
कहा जाता है कि दिशा व्यक्ति की दशा बदल देती है । यानी अगर दिशा गलत हो, तो व्यक्ति का भविष्य चौपट हो सकता है और यदि यह सही हो, तो भविष्य उज्जवल हो सकता है ।
वास्तु शास्त्र के अनुसार प्रकृति एवं पंचमहाभूतों के बीच अनूठा संबंध होता है । प्रकृति के खिलाफ चलने पर नाना प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है । इसलिए सुख-समृद्धि हेतु भवन स्वामी को कम से कम दिशाओं का ज्ञान तो होना ही चाहिए । यह बात भवन, फैक्ट्री, दुकान, कंपलेक्स पर पूर्णतया खरी उतरती है ।
वास्तु शास्त्र में चार दिशाओं के अलावा चार उपदिशाएं भी होती हैं, जो परस्पर दो मुख्य दिशाओं के मध्य में होती है । यह उप दिशा (विदिशाएं) ईशान (पूर्व-उत्तर), आग्नेय (दक्षिण-पूर्व), नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम), वायव्य ((उत्तर-पश्चिम)) नाम से जानी जाती हैं । साथ ही शास्त्रों में भी व्यक्ति को दिशा को जानकर ही शुभ कार्य करने की सलाह दी गई है । इनकी अनुसार सप्ताह के सातों दिन यदि दिशा ज्ञान के आधार पर कार्य किए जाएं, तो कार्य में सफलता मिलती है ।
हर दिशा के अनुसार ग्रहों की भी विवेचना की गई है । मसलन पूर्व में सूर्य ग्रह का वास होता है, जबकि दक्षिण पूर्व मंं शनि ग्रह मौजूद है । इसी प्रकार दक्षिण दिशा को मंगल और पश्चिम को गुरु ग्रह का वास माना गया है । उत्तर-पश्चिम में चंद्रमा और दक्षिण-पूर्व दिशा में शुक्र का वास कहा गया है । इसी तरह उत्तर-पूर्व दिशा में बुध ग्रह की उपस्थिति शास्त्रों में बताई गई है ।
इसलिए यदि आप अपने किसी भी कार्य पहले दिशा के अनुसार ग्रह स्थिति जान लेते हैं, तो कार्य की सफलता की संभावना बढ़ जाएगी ।