नैतिक कहानी: किसी काम से मैं दूसरे शहर जा रहा था। उस दिन पहले की अपेक्षा बस स्टॉप पर भीड़ ज्यादा थी। मन में आया कि जब तक भीड़ ना छट जाए एक कप चाय ही पी ली जाए। यह सोच एक चाय की दुकान पर जा बैठा। सावन का महीना था, इसलिए हर बस में कांवड़ियों की संख्या ज्यादा थी। जितनी बसें उस समय निकाली उसमें भोले की भोले भरे थे। उनकी कावड़ बसों की छतों पर लदीं थी।
करीब आधे घंटे बाद एक बस आई जिसकी सीटें खाली दिखी। स्टैंड से थोड़ा पहले ही भागकर बस में जा बैठा। देखते- ही- देखते बस भर गई। कुछ देर हुई होगी कि पास की सीट पर बैठे एक युवक ने हैरान-परेशान अंदाज में कहा, मेरा पर्स कहीं गुम हो गया। उसमें एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड, पैन कार्ड वगैरह-वगैरह थे। हालांकि उसे यह याद नहीं था कि पर्स से लास्ट टाइम कब चीजें निकाली थी। इसलिए मैंने सलाह दी कि फिलहाल तो आप अपने दफ्तर में इसकी सूचना दे दें। हो सकता है कि वही कहीं रह गया हो। उससे यह भी कहा कि एटीएम कार्ड कोई दूसरा यूज ना करें, उसे ब्लॉक करा दें। मगर वह एक-एक कर सभी जेबें तलाशता रहा। उसके मोबाइल और कुछ रुपए सही सलामत मिले।
लेकिन पर्स गुम होने का अफसोस अब भी उसके चेहरे की उदासी बयां कर रहा था। सिर पर हाथ रखकर बस की खिड़की से टिका हुआ था, कि उसके तीन में से एक मोबाइल पर घंटी बजी। उसने झट से रिसीव किया और पहले की तरह खिड़की से जा टिका। धीमी आवाज में काफी देर तक बातें चलती रही। कुछ देर बाद उसकी तरफ नजर गई, तो देखा कि वह हंस – हंस कर बातें कर रहा था। मुझे लगा शायद उसका पर्स मिल गया है।
कॉल खत्म होते ही मैंने उससे पूछा, ‘पर्स मिल गया क्या’ ? उसका जवाब था, जनाब भावनाओं को समझा करो। इस कॉल के सामने पर्स तो क्या सब कुछ छोड़ सकता हूं। मैं समझ गया कि यह किसी गर्लफ्रेंड की बातें कर रहा है। खैर, अच्छा लगा। यह सोच कर कि हर किसी को ऐसी मुसीबतों में ऐसी कॉल आ जाए।