हिंदू धर्म ग्रंथों में गौ को माता का दर्जा दिया गया है । इसकी सेवा से जीवन में सुख समृद्धि मिलती है
गाय के प्रति आस्था को समझने की आवश्यकता नहीं है । क्योंकि हिंदू धर्म में गौ सेवा को कर्तव्य माना गया है । पशु रूप में गाय सृष्टि मातृका कही जाती है । वेद और पुराणों में गौ को लेकर कई अच्छी बातें बताई गई हैं । पाप मुक्ति से लेकर सुखी जीवन के लिए गौ सेवा करने की बात कही गई है । गाय के शरीर में सभी देवी देवताओं का वास माना गया है । कोई भी धार्मिक कार्य ऐसा नहीं है, जिसमें गौ की मौजूदगी या उनसे जुड़ी सामग्री की आवश्यकता न हो महर्षि वशिष्ठ का कामधेनु के लिए प्राणों की बाजी लगाना, महर्षि च्यवन का अपने शरीर के बदले नहुष का चक्रवर्ती राज्य ठुकरा कर एक गाय का मूल्य निश्चित करना, जैसे प्रसंग यही दर्शाते हैं कि गाय से बढ़कर उपकार करने वाली और वस्तु संसार में नहीं है । यह माता के समान मानव जाति का उपकार करने वाली, दीर्घायु और निरोगता प्रदान करने वाली है । इसलिए शास्त्रों में गाय को माता का दर्जा दिया गया है ।
गौ सेवा का महत्व
वेदों में कहा गया है- ‘माता रुद्राणां, दुहिता वसूनां । स्वसा आदित्यानं नाभिः ॥’
अर्थात गाय रुद्रों की माता है । वसुओं की पुत्री है । सूर्य की बहन है और घी अमृत का केंद्र है । मार्कंडेय पुराण में कहां गया है कि विश्व का कल्याण गाय पर आधारित है । गाय की पीठ ऋग्वेद, धड़ यजुर्वेद, मुख सामवेद, ग्रीवा इष्टापूर्ति सत्कर्म, रोम साधु युक्त है । गोबर एवं गोमूत्र में शांति और पुष्टि है । कहते हैं कि जिस घर में नियमित गौ सेवा होती हो, उस घर से सभी प्रकार की बाधाओं और विघ्नों का स्वता: निवारण हो जाता है । अग्नि पुराण में भी गाय को पवित्र और मांगलिक माना गया है ।
गौ सेवा के लाभ
विष्णु स्मृति में कहा गया है कि गौ के निवास की भूमि पवित्र होती है । उनसे समस्त लोक का कल्याण होता है । गायों से यज्ञ सफल होता है । महाभारत के अनुशासन पर्व में भी गाय से जुड़े प्रसंग है, जिसमें कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयता पूर्वक सांस ले, वहां के सारे पाप दूर हो जाते हैं । अथर्ववेद में कहा गया है कि गौ के दूध से निर्बल मनुष्य बलवान और हृष्ट-पुष्ट होता है । गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है गाय में कामधेनु में ही हूं । गरुड़ पुराण और पदम पुराण में भी गौ-सेवा की बात कही गई है ।
शुभ है गौ-दान
महाभारत में कहा गया है कि दान में दी हुई गौ अपने विभिन्न गुणों द्वारा कामधेनु बनकर परलोक में दाता के पास पहुंचती है । वह अपने कर्मों से बंधकर घोर अंधकार पूर्वक नर्क में गिरते हुए मनुष्य का उसी प्रकार उद्धार करती है, जैसे वायु के सहारे से चलती हुई नाव मनुष्य को महासागर में डूबने से बचाती है ।