गायत्री पुरश्चरण
ब्रह्मा गायत्री में २४ अक्षर होते हैं । अतः गायत्री के एक पुरश्चरण में २४ लाख गायत्री का जप करना होता है । पुरश्चरण के अनेक नियम हैं । २४ लक्ष जप जब तक पूरा न हों जाय बराबर नियम पूर्वक ३००० गायत्री का जप किये जाओ । इस तरह अपने मानस रूपी दर्पण का मल हटाकर आध्यात्मिक बीज बोने के लिए खेत तैयार करो ।
महाराष्ट्र ब्राह्मणो को गायत्री पुरश्चरण करने के बड़ी रुचि होती है । महाराष्ट्र देश के पूना आदि कई नगरों में ऐसे अनेक सज्जन मिलेंगे जो कई बार गायत्री पुरश्चरण कर चुके है । महामना प० मदन मोहन मालवीय गायत्री पुरश्चरण के बड़े भक्त हैं । उनके जीवन की सफलता और वनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना और उन्नति का रहस्य उनका निरन्तर गायत्री जप और माता गायत्री की कृपा ही है ।
ये भी पढ़ें… मंत्र देवता की प्रार्थना या स्तुति का ही एक रूप है (मंत्रो की महिमा)
पंचदसी नामक संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रणेता स्वामी विद्यारण्य ने गायत्री के पुरश्चरण किये थे । गायत्री माता ने उनको प्रत्यक्ष दर्शन दिये थे और वर मांगने के लिए कहा । स्वामी जी ने कहा– माता दक्षिण में भारी अकाल पड़ा है । आप इतना सोना बरसावें कि लोगों का कष्ट दूर हो जाये । गायत्री माता के वर के अनुसार दक्षिण में सोना बरसा । गायत्री मंत्र में ऐसी शक्ति है ।
शुद्ध मन वाले अथवा योगभ्रष्ट मनुष्यो को एक ही पुरश्चरण करने से गायत्री के दर्शन हो सकते है । इस कलिकाल में अधिकांश लोगों के मन कलुषित होते है । अतः कलुषता की मात्रानुसार एक से अधिक पुरश्चरणो के करने से सफलता मिलती है । जितना अधिक मन मैला होगा उतने ही पुरश्चऱण करने होंगे । प्रसिद्ध मधुसूदन स्वामी ने कृष्ण मन्त्र के १७ पुरुश्चरण किए थे । उन्होंने पूर्व जन्म में १७ ब्राह्मणो की हत्या की थी । इसलिए उन्हें भगवान कृष्ण के दर्शन न हुए । किन्तु १८ वा पुश्चरण जब आधा ही हुआ था कि उन्हें भगवान के दर्शन हो गये । यही नियम गायत्री के पुरश्चरण में भी लागू है ।