तुम हृदय-कमल ( अनाहत चक्र ) पर अपने चित्त को स्थिर कर एकाग्र करो, या दोनो भ्रकुटीओ के मध्य का स्थान आज्ञा चक्र कहलाता है उस पर करो । हठयोंगियो के अनुसार आज्ञा चक्र मस्तिष्क का स्थान है । यदि कोई मनुष्य आज्ञा चक्र पर चित्त को लगा कर उसे एकाग्र कर लेता है तो उसका मस्तिष्क सुगमता से उसके वश में हो जाएगा । अपने स्थान पर बैठ जाओ । आँखे बन्द कर लो और जप तथा ध्यान करना आरम्भ कर दो ।
जब कोई दोनों भृकुटिओ के बीच में अपनी दृष्टि को एकाग्र कर लेता है तब वह भूमध्य दृष्टि कहलाती है । अपने ध्यान के कमरे में पदमासन, सिद्धसन, अथवा स्वस्तिकासन लगा कर बैठ जाओ और दोनो, भृकुटियों के मध्य में अपनी दृष्टि को स्थिर कर दो । यह अभ्यास क्रमश: बढाना चाहिए । अधि मिनट से आरम्भ कर आधे घंटे तक बढाते रहना चाहिए । इस अभ्यास में तनिक भी उत्पात अथवा गड़बड़ नहीं होना
चाहिए। क्रमश: समय को बढाते जाना चाहिए । यह योग-क्रिया विक्षेप अथवा मन की चंचलता की दूर कर देती है । और चित्त की एकाग्र बनाती हैं । श्री कृष्ण जो ने इस अभ्यास की भगवदगीता के पंचम अध्याय के २७ वे श्लोक में इस प्राकार निर्देशित किया है-बाहरी सम्बन्धो को बिलकुल तोड़ कर और दोनों भृकुटियों के बीच के स्थान पर दृष्टि को स्थिर करना आदि ।
अपने आसन पर आसीन हो जाओ ओर अपनी दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर लगाओ । इसका अभ्यास आधे मिनट से लेकर आधे घंटे तक बढाओ । यह धीरे-धीरे ही करना चाहिए । अपनी आँखो पर जोर मत डालो । समय को धीरे-धीरे ही बढाओ वह नासि-काग्र दृष्टि कहलाती है । तुम अपने लिए चाहे आज्ञा-दृष्टि चुनलो, चाहे नासिकाग्र दृष्टि, दोनों ही ठीक है । यहां तक कि जब तुम सड़क पर चल रहे हो, तुम्हें इसका अभ्यास करते रहना चाहिए । इससे तुम्हें चित्त की एकाग्र करने में सहायता मिलेगी ।
कुछ साधक आँखे खोल कर चित्त को एकाग्र करना पसन्द करते हैं । कुछ आँखे बन्द करके और कुछ आधी आँखे रखना चाहते हैं। अगर तुम बंद करके ध्यान करते हों तो धूल या दूसरे कण तुम्हारी आँखो में नहीं जाएगे। कुछ साधक, जिनको बन्द आँखो में रोशनी और तारै दिखलाई देते है, वे खुली आँखों से ध्यान करना पसन्द करते हैं । कुछ लोगों को जो आंखे बन्द करके ध्यान करते हैं, निंद्रा बडी जल्दी ही धर दबाती है। आरम्भ में जो खुली आँखो से ध्यान करना शुरू करे, उसका मन बडी जल्दी ही सांसारिक वस्तु में भटकने लगता है और चंचल हो जाता है। इस प्रकार अपनी बुद्धि के अनुसार, जो उपाय तुम्हें ठीक लगे उसी उपाय से ध्यान करना आरम्भ कीजिए । दूसरी बाधाओं पर भी अपनी बुद्धि द्वारा सोच-विचार कर विजय पाओ । ब्रूस और मकडी के सिद्धांत पर मनन करों । शांतिपूर्वक और धैर्यसहित काम लो । परिश्रम से आध्यात्मिक विजय पाओ । आध्यात्मिक वीर वनों और अपने गले के चारों ओर आध्यात्मिकता की माला घारण कर लो ।