गौ पूजन से मिले अथाह पुण्य
हिंदू शास्त्रों में गौमाता को परम पूजनीय कहा गया है। दरअसल उनके पूरे शरीर में समस्त देवताओं, गंधर्वों, ऋषि-मुनियों आदि का निवास होता है। इसलिए इनकी पूजा से पुण्य मिलता है।
गोपाष्टमी पूजा या गोपाष्टमी व्रत कार्तिक शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है। गोपाष्टमी का पर्व पूरी तरह से भगवान श्री कृष्ण और उनकी प्रिय गायों को समर्पित है। पुराणों के अनुसार गोपाष्टमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम ग्वाले बने थे। इसलिए उनके साथ-साथ गायों की महत्ता बढ़ जाती है। इस दिन गायों को स्नान कराकर रंग बिरंगे कपड़े और आभूषणों से सुसज्जित किया जाता है। भक्त इनके सींगों को हल्दी से रंगते हैं और माथे पर सिंदूर लगाते हैं। इसके बाद गाय की परिक्रमा की जाती है। देश में जहां कहीं भी श्री कृष्ण जी का मंदिर है, वहां गोपाष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
चाहे गौशाला हो या कोई परिवार, अगर उनके यहां गाय हैं, तो वहां इस दिन गौ पूजा अवश्य करनी चाहिए। वेदों में ऋषि-मुनियों द्वारा गौमाता की पूजा का वर्णन विस्तार से किया गया है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि गौ माता की सेवा करने से समस्त पापों का शमन होता है और उनकी उपेक्षा करने वालों का सौभाग्य जाता रहता है। उनके बारे में कहा गया है कि गौ के सींगों के अगले भाग में साक्षात जनार्दन विष्णु भगवान वास करते हैं। इसी तरह सींगों की जड़ में देवी पार्वती और सींगों के मध्य भाग में भगवान सदाशिव विराजमान रहते हैं। गौ के मस्तक में ब्रह्मा और कंधे में बृहस्पति तथा ललाट में भगवान शंकर का वास होता है, जबकि कानों में अश्वनीकुमार तथा नेत्रों में सूर्य व चंद्रमा की उपस्थिति होती है।
गौमाता के दांतो में समस्त ऋषि – मुनियों तथा वक्षस्थल तथा जीभ में देवी सरस्वती का वास होता है। पिंडलियों में सारे देवता का निवास करते हैं। ऐसे में इनके प्रति सच्ची श्रद्धाभक्ति हो, तो भक्त को असीम सौभाग्य की प्राप्ति होती है। बात करें गौ माता के खुरों की तो मध्य भाग में गंधर्व और अग्रभाग में चंद्रमा रहते हैं, जबकि पिछले भाग में मुख्य अप्सराओं की उपस्थिति शास्त्रों में बताई गई है। इसी तरह उनके नितंब में पितृगणों का तथा भृकुटिमूल में तीनों गुणों का निवास माना गया है।
गौमाता के रोमकूपों में ऋषिगणो की उपस्थिति मानी गई है तथा प्रजापति उनकी खाल में रहते हैं इसी तरह उनकी पीठ में सूर्य तथा गोमूत्र में साक्षात गंगा विराजती हैं। केवल शरीर ही नहीं गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का निवास कहां गया है और होठों में भगवती चंडिका मौजूद रहती हैं। उनके स्तनों को चारों समुद्रों का प्रतीक माना जाता है और जब गाय रंभाती है तो देवी सावित्री और जब हूँकारती है तो प्रजापति का वास कहां गया है। यही नहीं इस धरा पर मौजूद सभी गौ को साक्षात विष्णु स्वरूप माना गया है और उनके संपूर्ण अंगों में भगवान केशव रहते हैं। कुल मिलाकर गौ का सारा स्वरूप पूजनीय है और यदि पूरी श्रद्धा और निष्ठा से इनकी पूजा की जाए, तो निश्चित रूप से भक्त को लाभ होता है।
मंत्र:-
ओम नमो गोभ्यः श्रीमतिभ्य सौरभ्या ईवा चा।
नमो ब्रह्मा सुताभ्यास चा पवित्रभयों नमो नमः।।