आरती को देखने से भी मिलता है पुण्य
आरती का अर्थ है देवता को मन से पुकारना । आरती देव को पाने के लिए की जाती है । वैसे भी देवता के प्रति प्रेम और भाव की जागृति शीघ्र होती है । आरती करने का ही नहीं, बल्कि देखने से भी बड़ा पुण्य मिलता है । आरती में पहले मूल मंत्र, जिस देवता का और जिस मंत्र से पूजन किया गया है, उसके जरिए तीन बार पुष्पांजलि दी जानी चाहिए ।
ढोल, नगाड़े घड़ियाल जैसे महा वाद्यों तथा जय जय कार शब्दों के साथ शुभ पात्र में घी या कपूर के साथ विषम संख्या की बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए । साधारणतया पांच बत्तियों से आरती की जाती है । इसे पंच प्रदीप भी कहते हैं । १,७ या उससे अधिक बत्तियों से भी आरती की जाती है । आरती के 5 अंग होते हैं । पहला दीपमाला, दूसरा जलयुक्त शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथा आम और पीपल के पत्तों से, और पांचवा साष्टांग रूप से आरती की जाती है । आरती के लिए मन में शुद्धता का भाव होना चाहिए । बस्त्र साफ-सुथरे हो । आरती के लिए लाई गई चीजें भी शुद्ध होनी चाहिए । आरती के लिए समय एक अलौकिक भाव बनाता है ।
आरती से पहले और पूजा के प्रारंभ में हम शंख बजाते हैं । मान्यता है कि पूजन से पहले शंख बजाने से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है और वातावरण शुद्ध हो जाता है । आरती पूजन विधि का अंतिम चरण होता है । इस समय पूजा स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा होती है
आरती के लिए जरूरी सामग्री
आरती शरीर के पंच प्राणों की प्रतीक है । आरती करते समय भक्त का भाव ऐसा हो कि पंच प्राणों की सहायता से वह ईश्वर की आरती उतार रहा है । घी की ज्योति ही जीव की आत्म ज्योति का प्रतीक है । पंच प्राणों सहित आर्त भाव से ईश्वर को पुकारना अर्थात पांच आरती है । रुई की बाती बैरागी का प्रतीक है । और रुई को बैराग्य रूपी बाती पंचप्राण व आत्म ज्योति को जोड़ने वाली कड़ी है ।
आरती में सामग्री का महत्व
कलश के विशिष्ट आकार के कारण अंदर रिक्त स्थान में एक विशिष्ट सूक्ष्म पैदा होता है । इस सूक्ष्म नाद के कंपन से ब्रह्मांड का शिव तत्व कलर्स की ओर आकृष्ट होता है । इस प्रकार कलर्स के जरिए उत्पन्न सूक्ष्म नाद तरंगों से भक्त को शिव तत्व का अधिक लाभ मिलता है ।
समुद्र मंथन के समय श्री विष्णु ने अमृत कलश धारण किया था । इसलिए मानते हैं कि कलश में सभी देवताओं का वास होता है । पूजा में कलश की स्थापना की जाती है । आरती के समय शंख, घंटी आदि वाद्यों को बजाने का विधान है । इन्हे मंगलकारी माना जाता है ।
कलश में जल क्यों भरें
देवताओं के लिए जलयुक्त कलर्स आसन स्वरूप में देखा जाता है । इसका कारण है कि जल का शुद्ध होगा ईश्वरीय तत्व आकृष्ट करने की क्षमता भी उतनी ही अधिक होगी ।
कलश पर नारियल रखना
कलश पर नारियल रखने से उसकी शिखा में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश होती है । जो कलश के जल में प्रवाहित होती है । इस प्रक्रिया में तरंगे कलर्स के जल में एक नियमित लय से उठती हैं । यह तरंगे बहुत ही सूक्ष्म होती हैं ।
कलश में सोना या पंचरत्न
पंचरत्नो में ब्रह्मांड के विशिष्ट 5 उच्च देवताओं के सगुण तत्व को ग्रहण करने की क्षमता होती है । सोना सात्विक है । इसलिए उसमें सत्वकरणा को आकृष्ट करने की क्षमता अधिक है । पंचरत्न व सोने के जरिए ब्रह्मांड के पांच उच्च देवताओं के शगुन तत्वों का लाभ भक्तों को एक साथ ही मिल जाता है ।