ईश्वर का प्रत्येक नाम अचिन्त्य शक्ति समन्वित है:-
जप किसी मंत्र अथवा ईश्वर नाम को बार बार भाव तथा भक्ति-पूर्वक दोहराने को कहते है । जप चित्त की समस्त बुराइओं का निवारण कर ईश्वर से जीव का साक्षात्कार कराता है ।
प्रत्येक नाम अचिन्त्य शक्ति समन्वित है । जैसे अग्नि में प्रत्येक वास्तु को भस्म करने की स्वाभाविकी शक्ति है, उसी प्रकार ईश्वर के नाम में हमारे पापो और वासनाओ को विदग्ध कर देने की शक्ति है । सब मीठी वास्तु से अधिक मीठा, सब अच्छी चीजों से अधिक अच्छा और सब पवित्र वस्तुओ से अधिक पवित्र ईश्वर का नाम है ।
इस संसार सागर को पर करने के लिए ईश्वर का नाम सुरक्षित नोका के सामान है । अहम भाव को नष्ट करने के लिए ईश्वर का नाम अचूक अस्त्र है ।
आध्यात्मिक संस्कारों को अधिक प्रबल बनाने के लिए जप विधान:-
ईश्वर के नाम का जप मनुष्यो में आध्यात्मिक शक्ति तथा गति उत्पन्न कर देता है और आध्यात्मिक संस्कारो को अधिक प्रबल बना देता है । मंत्र-जप से आध्यात्मिक स्फुरण उत्पन्न होते है । यह स्फुरण निश्चित रूप वाले होते है । ॐ नमः शिवाय का जप मष्तिष्क में शिव उत्पन्न करता है और ॐ नमो नारायण का जप हरी का रूप प्रकट करता है ।
ब्रह्ममुहूर्त में प्रातःकाल चार बजे उठो । ब्रह्ममुहूर्त का काल आध्यात्मिक साधना के लिए और जप करने के लिए सबसे अच्छा समय है । प्रातःकाल हमारा चित्त सर्वथा ताजा, पवित्र, स्वच्छ तथा बिलकुल शांत होता है। इस समय मष्तिष्क बिलकुल कोरे कागज की भांति होताहै । और दिन की अपेक्षा सांसारिक कार्यों से अधिक स्वतन्त्र होता है । इस समय हम चित्त को किसी भी कार्य में सुगमतापूर्वक लगा सकते हैं । इस विशेष समय पर वातावरण में अधिक सत्व होता है । यदि तुम स्नान नहीं कर सको तो अपने हाथ, पैर और मुँह को धोकर जप करने के लिए बैठ जाओ । कम्बल, कुशासन अथवा मृग चर्म पर बैठो । इसके ऊपर कोई वस्त्र बिछा लो । इससे शरीर की विद्दुत शक्ति सुरक्षित रहती है । जप प्रांरभ करने से पूर्व कोई प्रार्थना करनी चाहिए ।
अचल और धीर धारणा और निश्चय कर बैठो । तुममे इतनी शक्ति होनी चाहिए कि तुम लगातार तीन घंटो तक पदम्, सिद्ध अथवा सुखासन पर बैठ सको ।
जब तुम जप का मंत्रोच्चारण करते हों तो ऐसा अनुभव करो कि ईश्वर तुम्हारे हृदय पटल पर आसीन है और उनकी पवित्रता तुम्हारे चित्त की और प्रवाहित होती जा रही है । यह भावना भी तुम्हारे ह्रदय में अवतरित हो जानी चाहिए कि मंत्र तुम्हारे अंतःकरण को स्वच्छ करता जा रहा है । वासनाओ और दुर्विचारों का दमन करता जा रहा है ।
जप को जल्दी जल्दी ठेकेदारी की तरह न निपटाए:-
जप में उतावलापन नहीं होना चाहिए । जैसे कि ठेकेदार अपने काम को जल्दी से जल्दी निपटा लेना चाहता है । जप धीरे धीरे भाव सहित और एकाग्रचित्त और भक्तिपूर्वक करो ।
मंत्र का शुद्ध उच्चारण करो । उच्चारण में बिल्कुल अशुद्धि नहीं होनी चाहिए । मंत्र का उच्चारण न तो जल्दी जल्दी करो और न एकदम ढिलाई से । माला फेरते समय तर्जनी ऊँगली का प्रयोग नहीं करना चाहिए । केवल अंगूठा, मध्यमा अंगुली तथा कनिष्ठका का ही प्रयोग करना चाहिए एक माला समाप्त हो जाने पर फिर माला को फिर से पलट कर जप करना चाहिए । माला की सुमरनी अथवा मेरु को पर नहीं करना चाहिए । और हाथ को कपडे से ढक लेना चाहिए जिससे माला जमीन पर न लटके ।
तुम्हे अपने मन में यह निश्चय कर लेना चाहिए कि बिना निश्चित संख्या में जप समाप्त किये आसन से हिलेंगे भी नहीं । माला अंतःकरण को ईश्वर कि और आमुख करने के लिए अंकुश के समान है । जिस प्रकार तुम अंकुश द्वारा हाथी को जिधर चाहो उधर घुमा सकते हो उसी प्रकार माला तुम्हारे अंतःकरण को भी ईश्वर कि और उन्मुख कर सकती है ।
कभी कभी बिना माला के भी जप करना चाहिए । ऐसे समय में माला के स्थान पर घडी का प्रयोग किया जा सकता है । घडी में समय देखकर, एक निश्चित समय तक जप करने का पक्का विचार कर लो ।
जप के साथ साथ ध्यान का भी अभ्यास करो । इसे जप सहित ध्यान कहा जाता है । धीरे धीरे जप स्वयं ही ध्यान में परिणत हो जायेगा । इसे जप रहित ध्यान कहा जाता है । प्रतिदिन चार बार जप के लिए बैठना चाहिए । प्रातः काल के समय, दोपहर को, संध्या तथा रात को जप के लिए आसन लगाना चाहिए ।
केवल एक ही मंत्र का जप करने तथा उसकी सिद्धि के लिए निश्चित कर लेना चाहिए:-
भगवान विष्णु के भक्तो को ॐ नमो नारायणाय, शिवजी के भक्तो को ॐ नमः शिवाय, कृष्ण के भक्तो को ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, श्री राम जी के भक्तो को श्री रामाय नमः अथवा श्री राम जय राम जय जय राम, देवी के भक्तो को गायत्री मंत्र अथवा दुर्गा मंत्र का जप करना चाहिए ।
यदि पूरा मंत्र पांच अक्षरों का है तो उस मंत्र का पांच लाख बार जप करना पुरश्चरण हुआ । जप हमारे स्वाभाव् का एक अंग ही हो जाना चाहिए । यहाँ तक कि स्वप्न में भी जप करते रहना चाहिए ।
ईश्वर साक्षात्कार करने के जितने भी साधन शास्त्रों ने निर्दिष्ट किये है, जप उन सबसे सुगम और अधिक प्रभावप्रद साधन है । यह निश्चयतः भक्त को भगवान कि सानिध्य में पहुँचाता है । यदि जप का अभ्यास सत्कारसेवित और निरंतर किया जाता रहे तो भक्त को अनेको आश्चर्य जनक सिद्धिया भी प्राप्त हो जाती है, जिन्हे हठयोगी या राजयोगी अपनी कठिन योगसाधना द्वारा अत्यंत कष्ट कर प्राप्त करता है ।
मनुष्य का कल्याण इसी में है कि वह भगवान कि शरण ग्रहण कर तमाम पाप और ताप से मुक्त हो जावे । नाम और नामी में जरा भी भेद नहीं । भगवान और भगवान नाम में भेद है ही कहा ? नाम जप भगवान के सानिध्य में रहना ही तो है ।