जानिए भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं संरचना का स्वामी क्यों माना जाता है

Vishwakarma bhagwan

भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं संरचना का स्वामी माना जाता है, उन्हें देव शिल्पी भी कहा जाता है । जीवन को सुखी बनाने वाले निर्माण सिद्धांतों का वास्तु शास्त्र उन्हीं की देन है

सारा संसार चलाते हैं विश्वकर्मा

देव लोक के शिल्पी विश्वकर्मा जी का प्रादुर्भाव प्राचीन काल से माना जा रहा है । जब नारायण की नाभि से ब्रह्माजी हुए और उन्हों ने सृष्टि की रचना की । तभी ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म हुए और धर्म के सातवे पुत्र के पुत्र स्वयं विश्वकर्मा जी हुए । पुराणों में वर्णित है कि स्वर्ग लोक का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी ने किया है । स्वर्ग लोक के बाद विश्वकर्मा जी ने लंका तथा द्वारिका का निर्माण कराया था । इनका नाम सर्वप्रथम ऋग्वेद और शतपथ वेद में मिलता है । पुराणों के अनुसार विश्वकर्मा लावण्यमयी के गर्भ से पैदा हुए थे और यह प्रभात वसु के पुत्र थे । नल इनका पुत्र था । श्री विश्वकर्मा जी को आदिकाल से वास्तु कला विद या देव-शिल्पी कह सकते हैं । जब कभी देवलोक में निर्माण की बात हुई, तो विश्वकर्मा जी आगे आए और उन्होंने अपने कौशल से, अपने ज्ञान से और अपनी कला से निर्माण कार्य किए । इसी कारण विश्वकर्मा जयंती को सभी फैक्ट्रियों, तकनीकी दफ्तरों और वर्कशॉप्स में धूमधाम से मनाया जाता है । हिंदू शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि विश्कर्मा जी ने शक्तिस्वरूपा दुर्गा जी को राक्षसों के संसार के लिए अपने हाथ से फरसा, शूल आदि अस्त्र-शस्त्र बना कर दिए थे ।

पुरुरुवा के राज्य में 12 वर्ष तक संपन्न होने वाले यज्ञ के लिए एक बहुत विशाल एवं भव्य यज्ञशाला का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी ने किया था । ऐसे वास्तु-शिल्पी का पूजन-अर्चन करने से तकनीकी बौद्धिकता का आशीर्वाद प्राप्त होता है । आधुनिक युग में अगर वास्तु शास्त्र की अनदेखी कर भवनों एवं कारखानों का निर्माण किया जाता है, तो इसका नकारात्मक परिणाम होता है और जब उन दोषो को दूर कर दिया जाता है, तो लाभ मिलता है । इसी कारण वास्तु शास्त्र की महत्ता स्वीकार की जाने लगी है । वास्तु की महत्ता के कारण आज भी भगवान विश्वकर्मा का महत्व बना हुआ है ।

विश्वकर्मा पूजा

देशभर में कई तिथियों को इनकी पूजा करने का विधान है । कुछ क्षेत्रों में माघ महीने में तो कुछ में दीपावली के आसपास उनकी पूजा की जाती है । किसी क्षेत्र के लोग ऋषि पंचमी के दिन इनकी पूजा करते हैं । इसी तरह भाद्रपद की संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है, जो हर साल 17 सितंबर को आती है । प्रातः काल स्नान करके कलश की स्थापना कर, गौ के गोबर से भूमी पवित्र कर चौक पूर कर विश्वकर्मा जी के चित्र की स्थापना करते हैं । जल, अक्षत, धूप, पुष्प, दीप, नैवेद्य तथा सुगंध से उनकी पूजा करने की विधि है ।

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