जन्माष्टमी के दिन पूरी श्रद्धा एवं विधि विधान से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं । श्री कृष्ण केवल आदिदेव ही नहीं वरन पूरे ब्रह्मांड के पोषक श्री विष्णु जी के साक्षात अवतार भी हैं, इनके हर रूप में सूर्य, जल, वायु, आकाश और पृथ्वी का समावेश है, इसलिए इनकी पूजा-अर्चना से भक्तों को परम शांति, सुख, धैर्य एवं अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है ।
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पूजन विधि
व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान आदि के पश्चात सूर्य, सोम, यम काल, संधि, भूत, पवन, खेचर, आकाश, पृथ्वी, दिग्पति और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्वाविमुख अथवा उत्तराविमुख होकर कुश के आसन पर बैठकर हाथ में जल, पुष्प, अक्षत, गंध, फलादि लेकर व्रत का संकल्प करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए ।
मंत्र- ममखिल्लपाप प्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये । श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत अहं करिष्ये ॥
तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण का दूध, दही, घी, शक्कर, शहद तथा पंचामृत से अभिषेक कर पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन-वंदन करना चाहिए । तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण को पीत वस्त्र, पीला चंदन और स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत कर नैवेद्य और पंचामृत अर्पण करते हुए आरती करनी चाहिए । नैवेद्य में तुलसी दल का विशेष महत्व है । अभिषेक करते समय ॐ भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते रहे ।
कृष्ण जन्माष्टमी उपवास का प्रभाव
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से साधक के सभी मनोरथ और कार्य सिद्ध हो जाते हैं । वैष्णव संप्रदाय के श्री कृष्ण जी की पूजा करने से 3 जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं ।
ऐसे करें प्रसन्न
कृं कृष्णाय नमः यह श्री कृष्ण का मूल मंत्र है । इसका जप करने से विघ्न बाधायें है दूर हो जाती है । गोकुलनाथाय नमः इस मंत्र का जप करने से मनुष्य की सारी इच्छाएं पूरी होती है गो वल्लभाय स्वाहा, इस मंत्र के जप से समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं ।
ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे । रमारमण विधेश विद्यामाशु प्रयच्छ मे ॥
इस मंत्र का जप करने से विद्यार्थियों बुद्धि बढ़ती है ।