सिरेमिस्ट बनें
आज के युग में सिरामिक उद्योग अनेक दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण होता जा रहा है। सिरामिक्स को मृत्तिकाशिल्प भी कहा जाता है। यह वस्तुतः क्ले से बना है। इसका आधुनिक उपयोग अकार्बनिक और अधातु पदार्थ संबंधी निर्माण कार्यों में होता है। इससे बनने वाले पदार्थ वस्तुतः उच्च ताप सहने वाले, कड़े एवं भंगुर होते हैं। ग्लास, टाइल्स, सिलिकेट, कार्बाइड ब्रिक, बोराइड, चीनी मिट्टी के बर्तन इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। सिलिकेट एवं ऑक्साइड होने के कारण इसका उपयोग अर्द्धचालकों में काफी होता है जो धातु के ऑक्साइड और सल्फाइड के होते हैं। इसके अलावा कंक्रीट, अधातु चुम्बकीय पदार्थ, उच्च ताप के कुचालक पदार्थ बनाये जाते हैं। इसका उपयोग थर्मीस्टर, थैरिस्टर एवं थर्मोकपल में भी होता है जो उच्च ताप पर कार्य करते हैं। उच्च ताप सहने वाले पदार्थों का उद्योगों में काफी महत्व है। खासकर, ताप व्यवहार वाले पदार्थों का भट्ठी में काफी उपयोग होता है जैसे ब्रिक को धातु के चारों ओर भट्ठी में डालने से पहले रखा जाता है। ताप व्यवहार की क्रिया धातु से बने पदार्थ, यंत्र उपकरण को दोष से मुक्त करने के लिए किया जाता है। यह दोष गर्म कार्य (वेल्डन प्रक्रम द्वारा), ठंडा कार्य, धातु को मोड़ने, आकार में डालने पर हो जाता है। उसमें उसकी आंतरिक संरचना कुछ बिगड़ जाती है जिससे तापोपचार द्वारा पुनः उसी संरचना में वापस लाया जाता है। अतः उच्च ताप वाले भट्ठी से जुड़े उद्योग में सिरामिस्ट का बहुत बड़ा योगदान है।
एक सिरामिस्ट को ताप व्यवहार की पूर्ण जानकारी रखनी पड़ती है। साथ-साथ पदार्थ के गुणवत्ता संबंधी आश्वासनों की भी जानकारी रखनी पड़ती है। अतः आज के भौतिक युग में जहां आधुनिक परीक्षण यंत्रों का चलन चल रहा है वहां सिरामिस्ट का बहुत बड़ा योगदान है। इसके अतिरिक्त इंटीरियर डेकोरेशन में शीशे एवं टाइलें काफी मात्रा में लगती हैं और आजकल तो वास्तु-शास्त्र में इंटीरियर डेकोरेशन खूब चल रहा है। गृह-सज्जा हेतु सिरामिक्स के बने टाइल्स, मार्बल तथा शीशे का उपयोग बहुत तेजी से हो रहा है जिसके लिए कई उद्योग कार्यरत हैं। इसमें जॉन्सन टाइल्स एवं ग्लास बनाने वाली कई निजी कम्पनियां हैं जो ग्लास की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देती हैं और काफी सजावटी एवं चमकीले समान बना रही हैं। इसके लिए उस पदार्थ (ग्लास) का यांत्रिक एवं धातु का गुण जानना जरूरी होता है। सरकारी संस्थाओं में सी. एस. आई. आर. का कोलकाता स्थित केन्द्रीय काँच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थान इस कार्य में वर्षों से कार्यरत है। सिरामिस्ट बनने के लिए कुछ संस्थाओं में डिप्लोमा एवं डिग्री की पढ़ाई की व्यवस्था है लेकिन यदि आप इस सुविधा से वंचित हैं तो घबराने की बात नहीं है, आप यह कोर्स पत्राचार के माध्यम से भी कर सकते हैं।
भारतीय मृत्तिकाशिल्प संस्थान, कोलकाता द्वारा आप पत्राचार पाठ्यक्रम का लाभ उठा सकते हैं। इसमें कुल 16 पेपर देने पड़ते हैं जो पार्ट I और पार्ट II में बंटे हैं। इस कोर्स को करने के लिए भी मान्यता प्राप्त संस्था से बी.एससी (भौतिकी एवं गणित सहित ) या डिप्लोमा होना चाहिए। इसके साथ-साथ दो वर्षों का उद्योग का अनुभव भी सिरामिक्स के क्षेत्र में होना चाहिए। आप इसके लिए 30/- रु. का ड्राफ्ट भेजकर निम्न पते से विवरणिका एवं फार्म प्राप्त कर सकते हैं:
भारतीय सिरामिक्स संस्थान द्वारा भारतीय ग्लास एण्ड सिरामिक्स रिसर्च सेन्टर, पो. जादवपुर, कोलकाता 700 032.
भारतीय सिरामिक्स संस्थान की एसोसिएट मेम्बरशिप परीक्षा किसी भी मान्यता प्राप्त संस्था से सिरामिक्स में बी.एससी के समकक्ष है। इसकी एसोसिएट मेम्बरशिप परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आप गेट की परीक्षा में सम्मिलित हो सकते हैं परीक्षा में किसी भी विषय में 40% अंक लाना अनिवार्य हैं और कुल अंक कम से कम 45% होने चाहिए। इसकी पार्ट 1 परीक्षा में कुल सात पेपर होते हैं जो सामान्य इंजीनियरिंग-1 (यांत्रिकी एवं विद्युत) एवं II (इन्स्ट्रूमेन्ट्स एवं इंजीनियरिंग ड्राईंग), ईधन एवं भट्ठी अभियांत्रिकी भूगर्भ एवं खनन पदार्थ, सिरामिक्स प्रौद्योगिकी, इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट एवं संगणक विज्ञान हैं। पार्ट II में दो भाग हैं, अनुभाग A एवं अनुभाग B, जिसमें अनुभाग A अनिवार्य हैं। इसके अंतर्गत आने वाले उपविषय हैं सिरामिक्स विज्ञान, भौतिकी, रासायनिकी। सिरामिक्स विज्ञान के अंतर्गत सिरामिक्स पदार्थ के यांत्रिक व्यवहार, सिरामिक्स अभियांत्रिकी पदार्थ एवं रासायनिकी विज्ञान, सिरामिक्स पदार्थ एवं माल का उत्पादन आते हैं।
पार्ट II अनुभाग B ऐच्छिक है जिसके अंतर्गत दो ग्रुप हैं और आप कोई एक ग्रुप ले सकते हैं। पहले ग्रुप में सिरामिक्स उत्पादन का मूलभूत विज्ञान-1 जो ग्लास का विषय है, दूसरा सिरामिक्स अभियांत्रिकी-1, ग्लास, ग्लास (स्पेशल) एवं एनामेल ग्लास प्रौद्योगिकी (व्यावहारिक) या इनामेल (व्यावहारिक) एवं वाइवा (पूछताछ)। ग्रुप 2 में भी सामान्यतः इसी तरह के विषय हैं, लेकिन इसमें स्पेशल विषय ग्लास न होकर रिफ्रेक्टरी भारी क्ले है। यहां ध्यान देने की एक बात यह है कि व्यावहारिक पेपर 100 अंक का होता है एवं वाइवा (पूछताछ) भी 100 अंक का होता है जिसमें उत्तीर्ण होने के लिए प्रेक्टिकल में 45% और वाइवा में 60% अंक लाना अनिवार्य है। शेष सभी पेपर मिलाकर 45% लाना अनिवार्य है। आप किसी विषय में यदि 40% अंक लाते हैं तो आपको उत्तीर्ण माना जाएगा लेकिन उत्तीर्ण होने के लिए समुच्चित अंक 45% होने चाहिए।
श्रोत:- विज्ञान प्रगति पत्रिका