अजामिल एक ब्राह्मण का पुत्र था । वह बड़ा कर्तव्यपरायण, पुण्यात्मा, विनयशील, सत्यवादी और वैदिक क्रियाकलापों को नियमपूर्वक नित्य करता था ।
एक दिन पिता की आज्ञानुसार वह पूजन के लिए फल, फूल, समिधा और कुश लाने जंगल में गया । लौटते समय दस्यु कन्या के साथ उसे रास्ते में एक शूद्र मिला । बहुत रोकने पर भी अजामिल दस्यु काम्य पर मोहित हो गया । उस दस्यु कन्या को पानी के लिए उसने अपनी सारी पैतृक संपत्ति खर्च कर डाली और अंत में अपनी विवाहित स्त्री को छोड़ कर उस दस्यु कन्या को रख लिया । उस शूद्र से कई पुत्र हुए जिनमे सबसे छोटे का नाम नारायण था । बुरी संगत में पड़कर अजामिल अपने गुणों और पुण्य कर्मो को भूल बैठा । अपनी नव वधु और बच्चों का पालन करने के लिए वह बड़ा पाप कर्म करने लगा ।
अजामिल अपने सबसे छोटे पुत्र नारायण को बहुत प्यार करता था । उसका अंत समय आ पंहुचा । यह जानते हुए भी उसका मन अपने सबसे छोटे लड़के नारायण में लगा हुआ था जो उस समय कुछ दूर पर खेल रहा था । इतने में उसे हाथ में याम फांस लिए तीन कराल यम-दूत आते दीख पड़े । उनको देखते ही डर के मारे अजामिल ने अपने छोटे लड़के को “नारायण” “नारायण” कहकर बुलाया । नारायण का नाम मुँह से निलकते ही उसी क्षण वह विष्णु पार्षद प्रकट हुए ।
जिस समय यमदूत अजामिल की जीवात्मा खींच रहे थे की विष्णु पार्षदों से पूछा कि हमारे इस उचित धर्म में बाधा डालने वाले आप कौन है ? इस पर तेजस्वी विष्णु पार्षदों ने हंसकर पूछा — “धर्म क्या है ? क्या तुम्हारे स्वामी यमराज को सब कर्म करने वाले जीवो को दंड देने का अधिकार है ? क्या इस काम में कोई भेदभाव नहीं है ?”
इस तरह धर्म क्या है पूरा बृतान्त यमदूतो को समझाया और कहा की इसने मरते समय भगवान नाम का उच्चारण किया है । इसलिए इसके सारे पाप नष्ट हो चुके है यह हमारे साथ यह बैकुंठ धाम जाने का अधिकारी है । कृपया करके आप इन्हे छोड़दे । सारा बृतान्त सुनकर अजामिल को अपनी करनी पर पश्चाताप हुआ और वैराग्य उत्पन्न होगया । अंत में विष्णु पार्षदों ने अजामिल को याम फँस से छुड़ा कर अपने साथ नारायण धाम को लगाये ।