प्रार्थना के श्लोक दूर करें शोक

प्रार्थना के श्लोक दूर करें शोक

भले ही स्नान हो या भोजन या संध्या में दीपक जलाने का कार्य हो । हर काम के दौरान देवी-देवताओं की स्तुति कर ली जाए, तो उस कार्य का उद्देश्य सफल होता है ।

श्लोक हो या मंत्र हमारे जीवन में दोनों का महत्व है । यदि हर दिन अपने हर काम से पहले यदि भगवान की स्तुति की जाए या किसी श्लोक का वाचन किया जाए, तो निश्चित रूप से इसका लाभ मिलता है । शास्त्रों में भी किसी महत्वपूर्ण कार्य से पूर्व श्लोक या मंत्रों का उच्चारण करने की शिक्षा दी गई है । इसे एक तरह से अनुशासन भी कहा गया है ।

हर दिन सुबह उठकर कोई भी कार्य आरंभ करने से पहले ब्रह्म मुहूर्त में यदि यह प्रार्थना की जाए तो देवताओं का आशीर्वाद मिलता है ।

प्रात:काल का कर-दर्शनम् मंत्र-


कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तू गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम् ।।

इस मंत्र में हाथों का अग्र भाग देवी लक्ष्मी, मध्यभाग देवी सरस्वती और कलाई का हिस्सा गोविंद को समर्पित करते हुए धन, बुद्धि एवं यश की कामना की जाती है ।

भूमि पर चरण रखते समय पृथ्वी से क्षमा प्रार्थना के लिए मंत्र:-


समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते ।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव ।।

अर्थात समुद्ररूपी वस्त्र धारण करनेवाली, पर्वतरूपी स्तनोंवाली एवं भगवान श्रीविष्णुकी पत्नी हे भूमिदेवी, मैं आपको नमस्कार करता हूं । मेरे पैरों का आपको स्पर्श होगा । इसके लिए आप मुझे क्षमा करें ।

इसी तरह स्नान के दौरान भी मंत्रोचारण का नियम शास्त्रों में बताया गया है । ऐसा माना जाता है कि स्नान के दौरान देवताओं का आह्वान करने से तन एवं मन की अपवित्रता दूर हो जाती है । इसलिए स्नान के दौरान यह श्लोक को जपने का विधान बताया गया है ।

स्नान मंत्र :-


गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।

नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु ।।

जिससे सारी पवित्र नदियों की स्तुति की जाती है और उन सभी से आशीर्वाद मांगा जाता है ।

बात करें भोजन की तो कई लोग अपने इष्ट देवताओं को भोजन करने से पहले याद करते हैं । यह भी कहा गया है कि हर कण में भगवान उपस्थित हैं । इसलिए भोजन से पहले भी भगवान की स्तुति की जाती है । इस दौरान यह प्रार्थना करें,

भोजन मंत्र:-


ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ।।

अर्थात वह भोजन, भोजन बनाने की प्रक्रिया और वह अग्नि, हर किसी में उपस्थित है । इसलिए लोग भोजन से पहले यह प्रार्थना करके उन देवता से भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना करते हैं । साथ ही उन्हें धन्यवाद भी दिया जाता है ।

संध्या काल में भी दीपक जलाकर प्रार्थना करने का विधान है । प्रकाश को समृद्धि और संपन्नता का घोतक माना जाता है । प्रकाश अंधकार को दूर करता है । इसलिए संध्या में रोशनी करते समय दीप श्लोक का पाठ करने का नियम शास्त्रों में बताया गया है ।

संध्या में रोशनी करते समय दीप मंत्र :-


शुभम करोति कल्याणम अरोग्यम धन संपदा ।
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीप ज्योति नमोस्तुते ॥

इस दौरान इस मंत्र का तात्पर्य है कि मैं अपने हाथ जोड़कर समृद्धि, संपन्नता, अच्छे स्वास्थ्य, धन आगमन, शत्रुओं के नाश की कामना करता हूं । यहां अंधकार को शत्रु स्वरूप माना गया है ।

सारा दिन काम करने के बाद आदमी जब घर आता है, तो उसके लिए सोने से पूर्व भी श्लोक से देवताओं की स्तुति का नियम बनाया गया है । इस दौरान इस मंत्र का जाप करें

सोने से पूर्व का मंत्र:-


कराचरणा कर इतम वकायजम कर्माजम वा, श्रवन्यायनाजम वा मानसम वापराधम,

विहितमविहितम वा सर्वामेतातकश्मास्वा, जया जया करूणा बधे श्रीमहादेव शंभू
यानी हे देव मेरे दिनभर किए गए कार्यों में जो गलती हुई है उसे क्षमा करें ।

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