ईश्वर साधना के लिए आवश्यक साधन
अब तुम्हें जपयोग का पूर्ण परिचय मिल चुका है और तुम यह भी समझ गए कि ईश्वर के नाम में कितनी अमित शक्ति है । अब इसी क्षण से वास्तविक साधना आरम्भ कर दो । प्रतिदिन की साधना के लिए नीचे कुछ बातें बताई जा रही हैं :—
१-नियत समय:— सबसे उत्तम समय ब्राह्ममुहूर्त और गोधूलि को बेला है । उस समय सब कुछ सत्व-प्रधान रहता है । नियमितता का होना अत्यधिक अनिवार्य है ।
२-नियत स्थान:– प्रतिदिन एक ही स्थान पर बैठना बहुत लाभदायक है । बार-बार स्थान मत बदलो है ।
३-स्थिर आसन:– एक सुखपूर्वक आसन साधक के चित्त की स्थिर करने में सहायक होता है ।
४-उत्तर या पूर्व की ओऱ:– दिशा का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है जपयोग में इससे आशातीत सहायता मिलती है ।
५-आसन:– मृगचर्म या कुशासन अथवा कम्बल का प्रयोग करना चाहिए । इससे शरीर की विद्दुत-शक्ति सुरक्षित रहतीं है ।
६-पवित्र प्रार्थना:– जप से पूर्व अपने इष्ट-देवता की प्रार्थना साधक में सात्वक भाव उत्पन्न करती है ।
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७-शुद्ध उच्चारण:– जप करते समय उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए ।
८-सतर्कता:– यह अत्यंत आवश्यक गुण है जब तुम जप आरम्भ करते हो, तब तुम एकदम ताजे और सावधान रहते हो । पर कुछ समय पश्चात आपका चित्त चंचल होकर इधर-उधर भागने लगता है, निद्रा आपको धर दबाने लगती है । अतः जप करते समय इस बात से सतर्क रहा करो ।
९-जपमाला:– माला के प्रयोग से साधक सदा सजग रहता है और माला जप को जारी रखने के लिए एक उत्तेजक साधन का काम करती है । अपने मन में इस बात का पक्का विचार कर लो की माला की एक नियत संख्या समाप्त करके ही उठेंगे ।
१०-जप के प्रकार:– रूचि बनाये रखने के लिए और रूकावट को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि जप के कई प्रकारो का प्रयोग करते रहो । एक बार जोर से मंत्र का उच्चारण करो और फिर मन्त्र को गुनगुनाओ, और इसके बाद मानसिक जप करो।
११-ध्यान– जब तुम जप करते हो तो साथ-साथ ईश्वर का ध्यान भी करो और ऐसा समझो की उसका सुघर स्वरुप तुम्हारे सम्मुख ही है । इस अभ्यास से तुम्हारी साधना सुद्रण बनेगी और तुम सत्वर ही उस परमेश्वर से साक्षात्कार करोगे ।
१२-शांतिपाठ– यह भी बहुत आवश्यक है कि जप समाप्त हो जाता है तो तुरंत ही स्थान को छोड़ कर अपने सांसारिक कार्यो में मत लग जाओ और दूसरे लोगो से तुरंत ही जा कर मत मिलो । जप के पश्च्यात लगभग दस मिनट तक कम से कम चुपचाप बैठे रहो और कुछ प्रार्थना गाते रहो । तत्पश्च्यात भक्ति पूर्वक दंडवत प्रणाम करो । अब तुम स्थान छोड़ कर अपने दैनिक कार्य कर सकते हो । आध्यात्मिक स्पनंदन निरन्तर आपका साथ देते रहेंगे ।
तुम अपनी साधना शांतिपूर्वक दृणता और सहिष्णुतापूर्वक निरन्तर जारी रखो ओर इस प्रकार अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर नित्यानन्द की प्राप्त करो ।