जाने, सूर्य के हर राशि में भ्रमण के अनुरूप जातक के लाभ एवं हानि।

सूर्य के हर राशि में भ्रमण के अनुरूप जातक के लाभ एवं हानि

सूर्य हर राशि में एक-एक महीने तक भ्रमण करता है और उसी के अनुरूप जातक को लाभ एवं हानि होती है। वैसे पंचम भाव में सूर्य हानि देता है और अगर यह छठे भाव में हो, तो जातक के जीवन में खुशियां आती हैं।

आधुनिक युग में भी ज्योतिष शास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। दरअसल अपनी व्यस्त होती जा रही दिनचर्या में लोग कई बार परेशानियों से घिर जाते हैं, जिनसे निजात पाने के लिए वह या तो ईश्वर की शरण लेते हैं या ज्योतिष जैसी विधियों की। अगर गौर से देखा जाए, तो मनुष्य के जीवन में अच्छा और बुरा समय बराबर आता रहता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, वर्ष के 12 महीने में कुछ महीने तो बड़े शांतिपूर्ण और सुखमय होते हैं, लेकिन कुछ महीनों में ढेर सारी परेशानियां हमारे सामने आ जाती हैं, जिनका निदान जरूरी होता है। ये परेशानियां कई तरह की होती हैं और इनका प्रभाव अलग-अलग तरह से पड़ता है। पर वास्तव में देखा जाए, तो वर्ष में हमारी परेशानियों का कारण ग्रहों का राशियों में आवागमन होता है। सूर्य हर राशि में एक एक महीने तक रहता है।

1) अब यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य प्रबल हो, तो गोचर में अशुभ होने पर उस व्यक्ति को प्रत्येक वर्ष उन महीनों में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में विशेषकर आर्थिक मामलों में अशुभ गोचर तेजी से प्रभाव डालता है।

2) यदि सूर्य प्रथम भाव में लग्न या जन्म राशि से गमन करता है, तो शारीरिक कष्ट, दांपत्य जीवन में चिंता, धन का व्यय व् व्यर्थ परिश्रम जैसी परेशानियां आती हैं।

3) इसी तरह जब सूर्य दुतिय भाव में आ जाए, तो जातक को धन हानि, चिंता और कलह का सामना करना पड़ता है, जबकि तृतीय भाव का सूर्य पराक्रम व भाग्य में वृद्धि व शत्रुओं पर विजय का धोतक माना जाता है।

4) सूर्य जब चतुर्थ भाव में आ जाए, तो माता को कष्ट ,जातक के पिता से विवाद, कार्यों में बाधा और सुख में कमी आती है।

5) वही पंचम भाव का सूर्य आर्थिक नुकसान, मन में अस्थिरता, बच्चों की चिंता जैसे फल देता है।

6) अगर सूर्य छठे भाव में हो, तो यह रोग से मुक्ति, शत्रु पर विजय, यात्रा, धन लाभ व उन्नति के अवसर देता है।

7) कुंडली में यदि सातवें भाव में सूर्य हो, तो जातक को उदर विकार, दांपत्य जीवन में तनाव, अपयश, आर्थिक तंगी व मानसिक कष्ट होता है।

8) अगर जातक मानसिक अस्थिरता, दुर्घटना, राज्य हानि और रोगों से पीड़ित हो तो इसका मतलब है सूर्य अष्टम भाव में है।

9) इसी तरह नवम भाव का सूर्य व्यर्थ भागदौड़ ,असफलता, अपयश को दिखाता है। दशम भाव का सूर्य सुख संपन्नता, भ्रमण आदि फल देता है।

10) अगर सूर्य ग्रह ग्यारहवें भाव में हो, तो संतान सुख और धन लाभ देता है। इसी तरह बारहवें भाव का सूर्य शारीरिक कष्ट, विश्वासघात, राज्य भय आदि के संकेत देता है।

वैसे सूर्य के अलावा बुध, मंगल व शुक्र के गोचर भी समय-समय पर जातक के जीवन पर सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। मनुष्य के जीवन पर सभी ग्रहों का प्रभाव पड़ता है। कोई ग्रह उससे नाराज, तो कोई प्रसन्न रहता है। हालांकि पूजा-अर्चना और अन्य उपक्रम करके ग्रहों को अपने अनुकूल किए जाने का विधान है, पर इसके लिए जरूरी है कि पूजा पाठ संबंधी सारे नियमों का श्रद्धापूर्वक एवं निष्ठां से पालन किया जाए।

Related posts

Leave a Comment