अगर पूरी श्रद्धा भक्ति से चातुर्मास के दौरान व्रत एवं भगवान श्रीहरि का पूजन किया जाये, तो उपासक के जीवन में प्रत्येक उदेश्य की पूर्ति होती है । साथ ही वह निरोगी काया भी पाते हैं
हर साल आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक शुकल पक्ष की एकादशी तक के समय को चातुर्मास कहा जाता है । ऐसी धारणा है की इन चार महीनों मैं इंसान और भगवान का वास्तविक मिलन होता है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन चार महीनो में शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह्प्रवेश, देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ आदि संस्कार बंद रहतें हैं । चातुर्मास का सम्बन्ध देवशयन अवधि से है । पुराणों में कहा गया है की भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी तक चार मास पर्यन्त पाताल में राजाबलि के यहाँ निवास करतें हैं ।
चातुर्मास व्रत का उद्देश्य
इस व्रत के माध्यम से लोग सफल और सुखी जीवन की कामना करतें हैं । यह व्रत धीरज और संयम रख कर स्वस्थ रहने का मार्ग दिखाता है । इन चार महीनों में साधना के साथ यदि परहेज किया जाये, तो व्यक्ति के जीवन में विशेष परिवर्तन देखे जा सकतें हैं ।
चूँकि यह समय वर्षा का होता है, इसलिए इस मौसम में कई कीटाणु और जीवाणु भी उत्पन्न होतें हैं । ऐसे में व्रत के माध्यम से सयमित जीवन जीने का सन्देश मिलता है । साथ ही इस दौरान यात्राओं एवं आयोजनों को भी निषेध किया गया है, ताकि संक्रमण का प्रसार न हो ।
चातुर्मास व्रत
वर्षा काल के चार महीने सावन, भादो, आश्विन और कार्तिक में संपन्न होने वाले उपवास का नाम हैं, चातुर्मास । कुछ भक्त एकादशी से इस व्रत को आरम्भ करतें हैं, कुछ द्वादशी या पूर्णिमा को या उस दिन आरम्भ करतें हैं, जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है । पर इस व्रत की समाप्ति कार्तिक शुकल द्वादशी को होती है ।
चातुर्मास व्रत विधि
इस अवधी में साधक व्रत रख कर प्रतिदिन सूर्य उदय के समय स्नान आदि से निवृत्त हो कर भगवान विष्णु की आराधना करें । व्रत को इस संकल्प के साथ आरम्भ किया जा सकता है, ‘हे देव ! यह व्रत आपकी उपस्तिथि में लिया गया हे । यदि आप मेरे प्रति अनुग्रह करें, तो यह निर्विघ्न समाप्त हो जाये ।’
चातुर्मास व्रत नियम
चातुर्मास व्रत के सम्बन्ध में कुछ नियम भी बनाये गए हैं । मसलन इन चार महीनो तक व्रती को कुछ खाद्य पदार्थ त्याग देने चाहिए । दरसअल शास्त्रों में बताया गया है कि श्रावण मास में शाक, भाद्रपद में दही, आश्विन मास में दूध और कार्तिक मास में दालें ग्रहण करने से बचना चाहिए ।
चातुर्मास व्रत कारने वाले को शय्या, मांस, मधु आदि का भी त्याग करना चाहिए । उन्हें जमीन पर शयन करना चाहिए और पूर्णतः शाकाहारी बने रहना चाहिए ।
इस दौरान गुड़, तेल, दूध, बैंगन, शाकपत्र अदि भी निषेध बताए गए हैं । ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में गुड़ त्याग से मधुर स्वर मिलता है और तेल त्याग से पुत्र-पौत्र की प्राप्ति होती है । तेल के त्याग से शत्रु का नाश होता है । शाक त्याग से बुद्धि एवं बहुपुत्र प्राप्त होतें हैं । घृत त्याग से सौंदर्य मिलता हैं । दूध-दही के त्याग से वंश वृद्धि होती है तथा गौ का आशीर्वाद भी मिलता है । चातुर्मास में जो व्यक्ति उपवास करते हुए नमक का त्याग करता है, उसके सभी कार्य पूरे होतें हैं ।
व्रत के प्रकार
इस दौरान व्रत के भिन्न-भिन्न स्वरुप प्रचलित हैं । दिन में एक बार भोजन करना, दिन में एक बार आयाचित भोजन करना, दो दिन में एक बार भोजन करना, तीन रात उपवास करके चौथे दिन भोजन करना, पांच रात उपवास करके छठे दिन भोजन करना इत्यादि । इन व्रतों का भी लाभ उपासक को मिलता हे ।