जानिए, शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती हैं

शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती हैं

शनिदेव तो स्वयं वचनबद्ध है

पिपलेश्वर महादेव की पूजा करने वालों पर कभी भी शनि कुपित नहीं होते और उनका अनिष्ठ भी नहीं करते । इसलिए शनिवार के दिन पीपल की पूजा की जाती है ।

शनिदेव की कृपा प्राप्त करने तथा उनकी पीड़ा से मुक्त होने के लिए पिपलेश्वर महादेव की पूजा- अर्चना करनी चाहिए । क्योंकि पिपलेश्वर महादेव की पूजा करने वालों पर कभी भी शनि कुपित नहीं होते और ना ही उनका अनिष्ट करते हैं । आखिर पीपल से शनि क्यों वचनबद्ध है ? इसके पीछे भी एक कहानी है-

प्राचीन काल में पिप्पलाद मुनि के पिता सपरिवार यमुना के तट पर निवास करते थे । शनिदेव ने उन्हें अपनी क्रूरता से दरिद्र तथा रोगी बना कर मार डाला । उस समय पिप्पलाद अबोध बालक थे । बड़े होकर उन्होंने माता से अपने पिता के विषय में पूछा । उनकी माता ने सविस्तार उस घटना का वर्णन पिप्पलाद को बताया पिप्पलाद मुनि बड़े ही योगी और तपस्वी थे । अपने पिता के विषय में सुनकर वह अत्यंत क्रोधित हुए और शनिदेव को ढूढ़ने निकल पड़े । सहसा उन्हें शनिदेव पीपल के वृक्ष पर दिखाई पड़े । तब उन्होंने अपने योग बल से ब्रह्म दंड से शनिदेव पर प्रहार किया । शनि ब्रह्म दंड की मार से व्याकुल होकर इधर-उधर भागने लगे । ब्रह्म दंड की मार से शनि देव के दोनों पैर टूट गए । वह त्राहि त्राहि करने लगे । उन पर संकट आया देखकर भगवान शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने पिप्पलाद से कहा, ‘तुम्हें शनिदेव पर दया करना चाहिए । यह भी मेरा भक्त है । उन्हें काल गति के कारण धर्म का पालन करने के लिए ऐसा करना पड़ता है ।’ उनके इस कथन को सुनकर पिप्पलाद ने भगवान भोलेनाथ के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की और कहा, ‘हे प्रभु ! आप भक्त वत्सल हैं । आप शनि देव को आज्ञा दें कि वह इस चराचर जगत की निरीह प्राणियों को तथा मेरे द्वारा स्थापित पिपलेश्वर महादेव की पूजा करने वाले को कभी भी कष्ट नहीं देंगे ।’ शिव जी ने तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए । तभी से शनि भोलेनाथ की आज्ञा को शिरोधार्य करके वचनबद्ध हो गए । इसलिए शनि पीड़ा से बचने के लिए पीपल की पूजा की जाती है ।

शनि के उपाय :

प्रत्येक शनिवार को पिपलेश्वर महादेव का पूजन करें ।

शनिवार को पीपल के वृक्ष के चारों ओर सात बार कच्चे सूत को लपेटते हुए “ॐ शं शनैश्चराये नमः” का जप करें ।

शनि चालीसा, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण तथा राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें ।

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