उन दिनों शहर में स्थित एक वृद्ध आश्रम में नौकरी कर रहा था । एक दिन अश्वनी नाम का एक मित्र मेरे पास एक वृद्ध के साथ आया उसने कहा इनका अपना कोई नहीं है । यदि उन्हें यहां जगह मिल जाए तो कल्याण हो जाएगा । मैंने तुरंत प्रबंधक से कहकर उन्हें ठिकाना दिला दिया और उनके थैले को अलमारी में सुरक्षित रख दिया । कुछ दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई । पता चला कि उन्हें रक्त कैंसर था, जिसकी अंतिम अवस्था चल रही थी । आश्रम के द्वारा उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया और बात आई-गई हो गई ।
उनकी मृत्यु के बाद एक दिन मैं कार्यालय में बैठा काम कर रहा था । तभी मेरा वही दोस्त आकर उन वृद्ध व्यक्ति का थैला मांगने लगा । तब मैंने उनसे उनका रिश्ता पूछा, तो उसने कहा, ‘वह मेरे पिता थे ।’ इतना सुनना था कि मेरा पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया । मैं गुस्से में उसे बोला, ‘तुम्हें शर्म आनी चाहिए ।’ तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी । फिर जब उनके थैले को खोला, तो उसमें से कुछ कपड़े, दवाइयों के अलावा एक लिफाफा मिला, जिसमें अश्वनी के नाम का दो लाख का चेक था । चेक देखते ही वह रोते हुए बोला, परिवार में ऐसी परिस्थिति आ गई थी कि उसने पिता को यहां रख दिया था । लेकिन पिता का पुत्र के प्रति प्यार इतनी निष्ठुरता के बाद भी कम नहीं हुआ और आते जाते उसे कुछ दे ही गए । अब अश्वनी आत्मग्लानि से जल रहा था ।
मनोज कुमार पोखरियाल, मेरठ
Nice Story