बात चार साल पहले की है । मैंने इंटर पास करके स्नातक मैं दाखिले के लिए फॉर्म भरा था, जिसकी प्रवेश कक्षा के लिए हमें पटना जाना था । सुबह नौ बजे की ट्रैन थी । हमने सारी तैयारी कर ली थी । पर हमें बहार का खुला पानी पीने की आदत नहीं थी, इसलिए बोतल मैं घर का पानी भी भर लिया था । उस दिन गर्मी का प्रकोप कुछ अधिक था ।
जब ट्रैन चल पड़ी और थोड़ी देर के बाद हमें प्यास लगी, तब हमें पता चला कि पानी कि बोतल तो घर पर ही छूट गई । कुछ देर के बाद ट्रैन एक स्टेशन पर पहुचीं, तो मैं ट्रैन से उतरकर किसी पानी बेचने वाले का स्टाल देखने लगा । लेकिन उस स्टेशन पर कोई भी बोतलबंद पानी नहीं बेच रहा था । वहीँ स्टेशन पर लगे नालों मैं भी पानी नहीं आ रहा था । इक्का-दुक्का नलों में पानी आ भी रहा था, तो वहां काफी भीड़ थी । ट्रैन चलने को हुई, तो मैं वापस ट्रैन मैं आकर बैठ गया ।
तभी हमारे बगल मैं बैठे सज्जन ने पानी की बोतल निकली और पानी पीने लगे । मैं लगातार उन्हे ही देख रहा था । जैसे ही वह बोतल बैग मैं रखने लगे मैंने उनसे बोतल मांग ली । मैंने पानी पीकर बोतल वापिस लौटाई और उन्हें ‘धन्यबाद ‘ कहा । फिर मैंने उन्हें बताया कि दरसल मेरी पानी कि बोतल घर पर ही रह गई है और बहार का पानी पीने से मेरा पेट ख़राब होने की आशंका है । इसलिए मैने उनसे पानी मांगा ।
यह सुनकर वह मुस्कुराये और बोले, ‘ प्यासे को पानी पिलाना तो पुण्य का काम होता है । और फिर यह भी सही है की हर जगह का पानी आपके शरीर को नहीं लगता ।’ उसके बाद रास्ते भर वह मुझे अपनी बोतल से पानी पिलाते रहे । पर इस यात्रा से मुझे पानी के मोल का पता जरूर चल गया था ।