एक मन्त्र को स्वयं दिव्य शक्ति समन्वित समझना चाहिए । वास्तव में मन्त्र तथा उसका देवता अभिन्न है । नाम और नामी एक ही हैं । मंत्र ही देवता है । मंत्र दिव्य शक्ति का प्रतीक है । श्रद्धा, विश्वास तथा भक्ति के साथ मन्त्र का निरन्तर जप करने से साधक की शक्ति का विकास होता है और मंत्र में मन्त्र-चैतन्य का जागरण होता है और साधक को मन्त्र-सिद्धि प्राप्त हो जाती है, तथा साधक एक प्रकार के प्रकाश, स्वतन्त्रता, शांति तथा अनंत आनंद और अमरत्वा का अनुभव करने लगता…
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