मंत्र जप के प्रकार:–
१. वैखरी जप :- मौखिक जप को वैखरी कहा जाता है । इसमें मन्त्र का उच्चारण स्पष्ट रूप से किया जाता है।
२. उपांशु जप :- फुसफुसाहट के साथ जप करने को उपांशु जप कहते हैं ।
३. मानसिक जप :- मानसिक जप सबसे आधिक शक्तिशाली हैं । इस प्रकार के जप में जीभ और होंठ दोनों ही नहीं हिलते, बल्कि मन ही मन मन्त्र का जाप करते है।
मंत्र जाप में भिन्नता की आवश्यकता
मंत्र जाप करते समय कुछ देर तक उच्चारण करते हुए (वैखरी जप) करो, फिर थोड़ी देर ओष्ठों-उच्चारण (उपांशु जप) कर, ततपश्चात् मानसिक जप । मन विभिन्नता चाहता है, एक ही चीज़ से उकता जाता है । भावहीन वृत्तिपूर्वक भी ईश्वर के नाम का जप किया जाय तो वह हमारे मनको स्वच्छ और पवित्र बना देता है । इस प्रकार जब मानसिक निर्मलता ओर पवित्रता का अवतरण हो जायेगा, तो भावना स्वतः ही आ जाएगी ।
तार स्वर में जप करने से बाहरी ध्वनियों से उदासीन रहा जा सकता है यह कभी भी खंडित नहीं हो पाता । साधारण लोगो के लिए मानसिक जप कठिन प्रतीत होता है और उनके मन में एक ही क्षण में वाधा आ सकती हैं, जिससे जप खंडित हो जायगा । जब तुम रात को जप करते हो तो निद्रा आ धर दबाती है । इस प्रकार अपने हाथ में एक माला ले लो ओर मनके फेरने लगो । इससे निद्रा का निराकरण किया जा सकता हैं । जोर-जोर से जप करने का यह दूसरा लाभ है । मन्त्र को जोर-जोर से बोलो । मानसिक जप न करो । माला तुम्हें जप के रुक जाने की चेतावनी देती रहेगी । यदि निद्रा वहुत ही ज्यादा सताती है तो खडे हो करजप करो ।
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तीन प्रकार के जपो से लाभ
शाखिडल्य उपनिषद में कहा है———बैखरी जप से वह लाभ होता है, जिसको वेदों में वर्णित किया गया है और उपांशु जप से बैखरी जप का हजारगुना लाभ होता हैं और मानसिक जप बैखरी जप से एक करोड़ गुना अधिक लाभ पहुंचता है । एक साल तक वैखरी जप का ही अभ्यास करते रहो । पुन: मानसिक जप का अभ्यास करो । अन्तिम श्वास के साथ अपने तप का सम्बन्ध स्थापित कर लो ।
जब तुम्हारा अभ्यास बढ़ जाता है, तब तुम्हारा रोम-रोम जपमय हो जाता है । फलत: तुम्हारा सम्पूर्ण शरीर मन्त्र के शक्तिशाली स्पन्द्रनों से परिपूर्ण हो जाता है और तुम सदा ईश्वर की भक्ति में मग्न रहने लगते हो । एक ऐसी अवस्था भी आती है, जब आँखों से अश्रु पात होने लगता है और शरीर की चेतना से तुम परे चले जाते हो । तुम्हे उत्साह, दिव्य ज्योति, आनंदोल्लास, प्रज्ञा, अन्त:ज्ञान तथा परम आनन्द की प्राप्ति हों जाएगी । इस उत्साहपूर्ण भावना से कविताए’ बहने लगती हैं और सिद्धियों का अवतरण होने लगता हैं । ऐश्वर्य करतलामलकवत् हो जाते हैं ।
ईश्वर के नाम का निरंतर जप करते रहो । इससे तुम्हारा मन तुम्हारे वश में हों जायेगा । जप पूर्ण श्रद्धा के साथ करों । जप का अम्यास आंतरिक प्रेम और दिव्य अनुराग के साथ करना चाहिए । ईश्वर के बिरह की अनुभूति की प्रतीति होनी चाहिए । इस विरह में तुम्हारी आँखों से निरन्तर अश्रु पात होता रहे । जप करते समय यह ध्यान करो कि ईश्वर का निवास तुम्हरे ह्रदय में है, उसके हाथों में शंख, चक्र, गदा ओर पदूम सुशोभित हैं, चारों और प्रकश ही प्रकाश है, वे पीले वस्त्रो ले अलंकृत हैं ओंर उनके ह्रदय में कोस्तुम मणि शोभायमान है । इस श्रंगार पर दृयान करने से जप गम्भीर होने लगेगा ।
Shaktisali manshik jaap ke bare mein bataiye
मानसिक जप ही सबसे आधिक शक्तिशाली होता हैं
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