रामकृष्ण परमहंस एक महान संत एवं विचारक थे । बचपन में ही इन्हें विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं, इसलिए इन्होंने ईश्वर की प्राप्ति और साधना में सारा जीवन बिता दिया । रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे और इनका मानना था कि सभी धर्मों कि मंजिल एक ही हैं, बस रस्ते अलग-अलग हैं ।
बचपन से ही माँ जगदम्बा के दर्शन करने उत्कट कामना इनमे उत्पन्न हो गई थी । वे दिन रात देवी की आराधना व ध्यान करते और देवी के दर्शन के लिए फुट फुट कर रोते । वे नाम मात्र भोजन व बहुत काम नींद लेते थे । अंततः उन्हें देवी के दर्शन हुए । आज समाज में चारों और मानवता सवेंदनहीन हो रही हैं और धर्म के नाम पर राजनीति की जारही हैं । ऐसे हालत में रामकृष्ण के विचारों से समाज को बल मिल सकता हैं । उन्होंने कई बार अहंकार के नाश करने का मंत्र देने के लिए खुद झाड़ू लगाई, भिखारियों की जूठी पत्तल साफ करते । विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का रिश्ता गुरु शिष्य के रूप में बड़ा ही अलौकिक रहा हैं । रामकृष्ण कहते थे,
(o) नाव जल में रहे, लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए ।
(o) जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता । उसी प्रकार मलिन अंतःकरण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता हैं ।
(o) हर कार्य और हर विचार को ईश्वर की इच्छा समझ कर करना चाहिए । जल्दी ही ईश्वर आप में बस जाएंगे ।